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पंडित भाषा के अलग अलग अर्थ कर कर के अनंत अपेक्षाओं से समझाते हैं मेरे गुरु ने इस अनंत में से एक सम्यक् एकांत निकाल कर ही मुझे बताया है, यही मेरे गुरुदेव की वाणी है
मेरे में शुभाशुभ राग हो रहे हैं, मैं जान रहा हूं, मुझे शुभ चाहिये की लड़ाई में ही पड़ा था, गुरु ने ही मुझे मेरा शुद्ध उपयोग बताया, शुद्ध को ही जानूं समझाया यही मेरे गुरुदेव की वाणी है
मेरे ही शुभाशुभ भावों को विस्तार से यथार्थ रूप समझाया, शुभाशुभ भावों में रुकना ही मेरा पागलपन है, इसे छुड़ाया, मेरा ही शुद्ध भाव प्रत्यक्ष कराया है यही मेरे गुरुदेव की वाणी है
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