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जैसा मैं मानता हूं, वैसा हूं मैं जानता, और उसी का है वेदन मानता हूं सदैव त्रिकाल, जानता मुझ त्रिकाल को ही फिर वेदन है मुझ परिणमन में, त्रिकाल प्रभु का ही.
जैसा मैं मानता हूं, वैसा हूं मैं जानता, और उसी का है वेदन मानता हूं शाश्वत अपरिणामी, जानता मुझ त्रिकाल को ही फिर वेदन है मुझ परिणमन में परम पारिणामिक भाव का ही.
जैसा मैं मानता हूं, वैसा हूं मैं जानता, और उसी का है वेदन मेरे जानने का, सामर्थ्य भी देखो जब पूर्ण सत को ही जाना और माना तो वेदन भी है अव्याबाध सुख, शांति, आनंद का ही.
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