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यह तृषा कभी भी पूरी नहीं होती और जीव इस ज्ञान की तृषा के पीछे पागलों की तरह ही चारों ओर भागता नजर आ रहा है.
मेरा ज्ञान तो आनंद शांतिमय सदा ही रहने वाला एक रूप ही है संसार का ज्ञान अनिश्चित सदा बदलने वाला ही है आकुल व्याकुल ही है.
मुझे संसार का जानने वाला कहा जरुर जाता है क्योंकि मेरा ज्ञान ही निर्मल शुद्ध है मेरा ज्ञान तृषा रहित, परिपूर्ण, स्वाधीन मुझ में मुझ से ही है.
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