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राजा
मैं हूं आतमराम मेरी है पहचान जानना देखना राम ने भी बेर तो खाये थे शबरी के उसने एक एक बेर को चखा और मीठे से मीठे बेर ही खिलाये भगवान राम को इसी तरह.
मैं भी यदि जानूं किसीको तो उस ज्ञान का स्वाद भी तो अपरंपार आनंद और शांतिमय ही होना चाहिये न तभी तो मैं हूं आतमराम मेरा ज्ञान जाने तो ज्ञेय भी है मेरा आनंद शांतिमय आतमराम
मैं हूं जीवराज मेरी है पहचान जानना देखना राजा का भोजन भी तो कोई विशेष विश्वासु ही बनता है और विश्वासु से बना भोजन भी चख करके ही तो परोसा जाता है.
मैं भी यदि जानूं तो पूरे विश्वास और श्रद्धा के साथ ही मेरा ज्ञेय भी स्वयं शांतिमय अपरंपार अनंत गुणों से सुशोभित एक रूप स्वच्छ, निर्मल, परिपूर्ण, सदैव, अटल, मेरा ही तो होता है.
मेरे ज्ञान का ज्ञेय कोई भी पर द्रव्य इसीलिए हो ही सकता नहीं पर द्रव्य संयोग से, आकुलता, व्याकुलता दिलाने वाला दुखमय ही है मैं, मेरा ज्ञान, मेरा ज्ञेय खुद ही, खुद में ही, खुद से ही पूर्ण आनंदमय हूं.
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