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मैं चैतन्य ज्ञानानंद स्वरूप हूं
मैं शरीर, घर, परिवार, समाज से
भिन्न अलग ही हूं, मैं कोई शरीर घर, परिवार, समाज से समझौता नहीं.
मैं चैतन्य ज्ञानानंद स्वरूप हूं
मैं शरीर, समाज, पुद्गल और समय को भी जानता, जाननेवाला मात्र हूं मुझ स्वरूप में स्थिर रह ही जानता हूं.
खुद ही खुदा हूं
मैं चैतन्य ज्ञानानंद स्वरूप हूं
मैं
सुख, आनंद, वीर्य, शांतिमय हूं मैं संसार के दुखों की अपेक्षा बगैर ही मैं तो स्वयं ही, स्वयं में सुखमय हूं.
मैं चैतन्य ज्ञानानंद स्वरूप हूं मैंने शरीर, घर, समाज को जाना अवश्य है, जाननेवाला हूं मैं ही सुधारने, बदलने, टिकानेवाला नहीं.
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