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प्रथम संस्करण से
प्रस्तावना
संसार में जितने भी धर्म प्रचलित हैं उन सब ने अहिंसा के समान ब्रह्मचर्य या शीलव्रत का महत्व स्वीकार किया है। ब्रह्मचर्य की महत्ता पर आज तक बहुत कुछ लिखा जा चुका है। संसार के और खास कर भारत के इतिहास में ऐसे अगणित महापुरुष हो गये हैं, जिन्होंने अपना विवाह किया ही नहीं, प्रत्युत आजीवन ब्रह्मचारी रहकर स्व-पर का कल्याण किया है। अनेक ऐसे भी गृहस्थ हुए हैं, जिन्होंने एक पत्नीव्रत अङ्गीकार कर उसे भले प्रकार पालन किया है, किन्तु ऐसे व्यक्तियों की संख्या बहुत कम है, क्योंकि भारतवर्ष के इतिहास में जितने भी महान् पुरुषों के चरित द्दष्टिगोचर होते हैं, उनमें उनकी अनेक स्त्रियों के होने का उल्लेख मिलता है। आज से अढ़ाई हजार वर्ष पहिले बहु-विवाह की आम प्रथा प्रचलित थी और लोग अनेक विवाह करते हुए अपने को भाग्यशाली समझते थे। ऐसे समय में सेठ सुदर्शन का एक पत्नीव्रत धारण करना और फिर तीन-तीन बार प्रबल बाधाएं आने पर भी अपने व्रत पर अटल बने रहना सचमुच उनकी महत्ता को प्रकट करता है और पुरुष समाज के सम्मुख एक उत्तम आदर्श उपस्थित करता है। जैन-जैनेतर शास्त्रों एवं पुराणों में स्त्रियों के शीलव्रत का माहात्म्य बताने वाले सहस्रों आख्यान मिलते हैं, पर सुदर्शन जैसे एक पत्नीव्रत वालों के नाम अंगुलियों पर गिनने लायक भी नहीं मिलते।
प्रस्तुत सुदर्शनोदय में वर्णित सुदर्शन का चरित सर्व प्रथम हमें हरिषेण के बृहत्कथा कोष में देखने को मिलता है। उसमें यह कथानक 'सुभग गोपाल' के नाम से दिया गया है। इसमें बतलाया गया है कि अंगदेश की चम्पापुरी में दन्तिवाहन नाम का राजा था और अभया नाम की उसकी रानी थी। उसी नगरी में ऋषभदास नाम के एक सेठ थे और जिनदासी नाम की उनकी सेठानी थी। सेठ की गाय-भैंसो को चराने वाला एक सुभग नामका गुवाला था। एक बार शीतकाल में जंगल से घर को आते हुए उसने एक स्थान पर ध्यानस्थ साधु को देखा और यह विचार करता हुआ घर चला गया कि ये साधु ऐसी ठंड की रात्रि कैसे व्यतीत करेंगे? प्रातःकाल आकर उसने देखा कि साधु उसी प्रकार समाधि में स्थित हैं। थोड़ी देर के बाद सूर्योदय हो जाने पर साधु ने समाधि खोली, प्राभातिक क्रियाएं की और 'णमो अरिहंताणं' ( नमोऽर्हते) ऐसा कह वे आकाश में उड़कर अन्यत्र चले गये। यह देखकर गुवाले के आश्चर्य का ठिकाना न रहा और वह सोचने लगा कि वे उक्त मंत्र के प्रभाव से आकाश में उड़कर चले गये हैं, अतः मैं भी इस मन्त्र की आराधना करके आकाशगामिनी विद्या सिद्ध करूंगा। तत्पश्चात् वह गुवाला प्रत्येक कार्य करते हुए उक्त मंत्र को जपने लगा। उसे उक्त मन्त्र बोलते हुए सेठ ने सुना तो उससे उसका कारण पूछा। उसने प्रत्यक्ष देखी घटना सुना दी। सेठ ने भी उसके जपते रहने की अनुमोदना की ।
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