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... 17 -... में वह विचारता रहा कि इतनी तेज ठंड में वे साधु कैसे रहे होंगे? पिछली रात में वह भैंसे लेकर चराने को निकला और देखता है कि वे साधु तथैव ध्यानस्थ विराजमान है तब उनके शरीर पर पड़े हुए तुषार (बर्फ) को उसने अपने हाथों से दूर किया, उनके पाद-मर्दनादि किये और महान् पुण्य का संचय किया। यथा
तथा पश्चिमरात्रौ च गृहीत्वा महिषी पुनः। तत्रागत्य समालोक्य तं मुनि ध्यानसंस्थितम्॥ तच्छरीरे __ महाशीतं तुषारं पतितं दुतम्। स्फेटयित्वा स्वहस्तेन
मुनेः
पादादिमर्दनम्॥ कृत्वा स्वास्थ्यं निधायोच्चः पुण्यभागी बभूव च ॥७॥
(आराधना तथा कोश पृ. १०९) उपरि वर्णित तीनों कथानकों को सामने रखकर जब हम सुदर्शनोदय में वर्णित कथानक पर दृष्टिपात करते हैं, तो ज्ञात होता है कि उपर्युक्त कथानकों का सार बहुत सुन्दर रूप से इसमें दिया हुआ है, और यतः यह काव्य रुप से रचा गया है, अतः काव्यगत समस्त विशेषताओं से यह भर-पूर है। इस प्रकार समुच्चय रुप से वर्णित सुदर्शन के चरित के विषय में आ. नयनन्दि का यह कथन पूर्ण रुप से सत्य सिद्ध होता है कि रामायण में राम सीता के वियोग से शोकाकुल दिखाई देते हैं, महाभारत में पाण्डव और कौरवों की कलह एवं मारकाट दिखाई देती है, तथा अन्य लौकिक शास्त्रों में जार, चोर, भील आदि का वर्णन मिलता है। किन्तु इस सुदर्शन सेठ के चरित में ऐसा एक भी दोष दिखाई नहीं देता, अर्थात् यह सर्वथा निर्दोष चरित है। यथा
रामो सीय वियोय-सौय-विहुंर संपत्त रामायणे जादा पंडव धायरट्ट सददं गोत कली भारहे। डेडाकोलिय चोररज्जुणिरदा आहासिदा सुद्दये णो एक्कं पि सुदंसणस्स चरिदे दोसं समुन्भासिदं ॥
___ (ब्यावर भवन प्रति, पत्र ११ B) वास्तव में आ. नयनन्दि का यह कथन पूर्ण रुप से सत्य है कि सुदर्शन के चरित में कहीं कोई दोष या महापुरष की मर्यादा का अतिक्रम नहीं दिखाई देता, प्रत्युत सुदर्शन का उत्तरोत्तर अभ्युदय ही द्दष्टिगोचर होता है।
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