Book Title: Sudarshanodaya Mahakavya
Author(s): Bhuramal Shastri, Hiralal Shastri
Publisher: Digambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj

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Page 160
________________ --- -------------- जल चन्दन तन्दुल पुष्पादिक, आठों द्रव्य मिलाय . । पूजा करके श्रीजिन-पद-की, पाऊं मुक्ति महासुख दाय ॥टेक ,९॥ इस विधि पूजन कर जिनवरकी, कर्म-कलंक नशाय । 'भूरा' सुखी होंय सब जगके, शान्ति अनूपम पाय ॥टेक ,१०॥ (५) पृष्ठ ७३-७४ पर आये 'तप देवांघ्रिसेवां' इत्यादि संस्कृत गीत का हिन्दी प्रद्यानुवाद - तेरे चरणों की सेवा में आया जी, जिन कर्त्तव्य मैंने निभाया जी ॥टेक॥ अघ-हरणी, सुख-कारिणी, चेष्टा तुव सज्ञान । दुखिया की विनती सुनो, हे जिन कृपा-निधान । करो तृप्ति संक्लेश-हर स्वामिन् तेरे चरणों की ॥१॥ जगने क्या पाया नहीं, इच्छित वर भगवान्, मुझ अभागि की वारि है, हे सद्-गुण सन्धान । क्या अब भी पाऊँ नहीं, मैं अभीष्ट वर-दान ॥तेरे चरणों की.२॥ सेये जगमें देव बहु, हे सज्योतिर्धाम, तुम तारों में सूर्य ज्यों, हे निष्काम ललाम। अन्तस्तम नहिं हर सकें, और देव वेकाम ॥ तेरे चरणों की. ३॥ वे सब निज यश गावते दीखें सदा जिनेश, स्वावलम्ब उपदेश कर, तुम हो शान्त सुवेश तुव शिक्षा ईक्षा-परा, साँचे तुम्हीं महेश ॥तेरे चरणों की. ४॥ अब भगवन, तुम ही शरण, तारण तरण महान् , वीतराग सर्वज्ञ हो, धारक केवल ज्ञान। 'भूरा' आयो शरणमें, लाज राख भगवान् ॥तेरे चरणों की.५॥ पृष्ठ ७४ पर आये 'जिनप परियामो मोदं' इत्यादि संस्कृत गीत का हिन्दी पद्यानुवाद - जिनवर, पायें प्रमोद देख तुव मुख आभाको ॥टेक॥ ज्यों निर्धन वनिता लख निधान को अति प्रमुदित होती । ज्यों चिर-शुधित मनुज को खुशियां सरस असन लख के होती ॥टेक॥ ज्यों घन-गर्जन सुनत मोर गण, . न, मधुर बोली बोलें। शान्तिमयी लख चन्द्रकला ज्यों, मत्त चकोर -नयन डोलें ॥टेक २॥ त्यों जिन, तुव मुख आभा लख मम, अहो हर्ष का छोर नहीं ।। 'भूरा' निशि-दिन यही चाहता, द्दष्टि न जावे और कहीं ॥टेक, ३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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