Book Title: Sudarshanodaya Mahakavya
Author(s): Bhuramal Shastri, Hiralal Shastri
Publisher: Digambar Jain Samiti evam Sakal Digambar Jain Samaj

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Page 159
________________ | 140 --------- (३) पृष्ठ ७० पर आये 'भो सखि जिनवर मुद्रां' इत्यादि संस्कृत गीत का हिन्दी पद्यानुवाद हे सखि, जिनवर मुद्रा देखो, जातें सफल नयन हो जाय, राग-रोष से रहित दिगम्बर, शान्त मूर्ति मम मनको भाय ।। तुलना भूतल पर नहिं जिसकी, दर्शन होवें भाग्य-वशाय ॥टेक ,११॥ पहिले किया राज्य-शासन है, जग को जग-सुख-मार्ग दिखाय। नासा-द्दष्टि रखे अब शिवका, भोग-योग-अन्तर बतलाय ॥टेक ,२॥ पद्मासन-संस्थित वह मुद्रा, सोहै कर पर कर हि धराय। निज बल-सम्मुख सब बल निष्फल, सबको यह सन्देश सुनाय ॥३॥ यदि तुम शान्ति चाहते भाई, भजो इसे अब सन्निधि आय। 'भूरा' जग को देय जलाञ्जलि, भजो इसे अब मन वचन काय ॥टेक ,४॥ (४) पृष्ठ ७१-७२ पर आये 'कदा समयः स' इत्यादि संस्कृत गीत का हिन्दी पद्यानुवाद - कब वह समय आय . भगवन्, तुव पद-पूजन का ॥टेक॥ कनक कलश में भर गंगा-जल, अति उमंगसों ल्याय, धार देत जिन-मुद्रा आगे, कर्म-कलंक बहाय ॥टेक, १॥ मलयागिर चन्दन को घिस, केशर कपूर मिलाय । जिन-मुद्रा-पद-अर्चन करतहिं, सब अपाय नश जाय ॥टेक, २॥ मुक्ताफल-सम उज्वल तन्दुल, लाकर पुञ्ज . चढ़ाय । जिन-मुद्रा के आगे, यातें स्वर्ग-रमा-का पति बन जाय ॥टेक, ३॥ कमल केतकी पारिजातके, बहुविध कुसुम चढ़ाय । जिन-मुद्रा के सम्मुख, यातें अति सौभाग्य लहायं ॥टेक, ४॥ षट् रसमयी दिव्य व्यञ्जनसे स्वर्ण-थाल भर लाय । जिन-मुद्रा सम्मुख मैं अरपूं, जातें क्षुधा रोग नश जाय ॥टेक , ५॥ घत कपूर और मणिमय यह, दीपक ज्योति जलाय ।। करूं आरती जिन-मुद्राकी, प्रगटै ज्ञान ज्योति अधिकाय ॥टेक,६॥ कृष्णागुरु चन्दन कपूर-मय, धूप सुगन्ध जलाय। कलं सुगन्धित दशों दिशाएं, कर्म-प्रभाव-हराय ॥टेक,७॥ आम नरंगी केला आदिक, , बहुविध फल मंगवाय । करू समर्पित उच्च भावसे, हरू विफलता, शिव-फल पाय ॥टेक ,८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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