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....... 421. करौ पलाशप्रकरौ तु तेन तयोर्निबद्धौ यतिनो गुणेन । दृष्ट्वेति निर्गत्य पलायिता वाङ्नमोऽस्त्वितीद्दङ् मधुला भिया वा ॥२६॥
पलाश के समान उनके दोनों हाथ यतिराज के गुण से निबद्ध हो गये हैं, यह देखकर ही मानों भयभीत होकर उनके मुख से 'नमोऽस्तु' ऐसी मधुर वाणी शीघ्र निकल पड़ी ॥२७॥
भावार्थ - इस श्लोक में पठित पलाश, गुण और मधुर ये तीन पद द्वयर्थक हैं । पलाश नाम कोमल कों पल का भी है और मांस-भक्षी का भी। गुण नाम स्वभाव या धर्म का भी है और डोरी या रस्सी का भी। मधुर नाम मीठे का भी है और मधु या मदिरा का भी है। इन तीनों पदों केप्रयोग से कवि ने यह भाव व्यक्त किया है कि जैसे कोई परुष मांस का भक्षण और मदिरा का पान करे. तो यह रस्सी से बांध कर अधिकारी पुरुष के सम्मुख उपस्थित किया जाता है और वहां पर वह डर के मारे उसको हाथ जोड़ने लगता है। प्रकृत में इसे इस प्रकार घटाना चाहिए कि सेठ और सेठानी के दोनों हाथ कोंपल के समान लाल वर्ण के थे, अतः पलाश (पल-भक्षण) के अपराध से वे मुनिराज के गुणरूप डोरी से बांध दिये गये और अपराधी होने के कारण ही मानों उनके मुख से नमस्कारपरक 'नमोऽस्तु' यह मधुर शब्द निकला और इसके बहाने से ही मानों उन्होंने पिये गये मधु या मदिरा को बाहिर निकाल दिया।
स्मासाद्य तत्पावनमिङ्गितञ्च तयोरुदङ सुरभि समञ्चत् । मधूपमं वाक्यमुदेति शस्यं मुनेर्मुखाब्जात्कुशलाशयस्य ॥२८॥
जैसे पवन के प्रवाह को पाकर जलाशयस्थ कमल का मधु पराग निकलकर सारे वातावरण को सुगन्धित कर देता है, वैसे ही इन सेठ-सेठानी के पावन स्वप्ररूप निमित्त को पाकर पवित्र अभिप्राय वाले मुनिराज के मुख-कमल से मधु-तुल्य मिष्ट प्रशंसनीय वाक्य प्रगट हुये, जो कि उनके भविष्य को और भी अधिक सुरभित और आनन्दित करने वाले थे ॥२८॥
मदुक्तिरेषा भवतोः सुवस्तु समस्तु किन्नो वृषवृद्धिरस्तु ।
अनेकधान्यार्थमुपायकोंमहत्सु शीरोचितधामभत्रोंः ॥२९॥
मुनिराज बोले - अनेक प्रकार से परके लिए हितकारक उपायों के करने वाले और सूर्य समान निर्मल ज्ञानरुप प्रकाश के भरने वाले, अतएव महापुरुषों में गिने जाने वाले आप दोनों के 'वृष-वृद्धि' हो और मेरी यह आशिष आपके लिए सुन्दर वस्तु सिद्ध हो ॥२९॥ ।
भावार्थ - यह श्लोक भी द्वयर्थक है। दूसरा अर्थ यह है कि जैसे अनेक प्रकार के धान्यों को उत्पन्न करने के प्रयत्न करनेवाले और हल चला करके अपनी आजीविका करने वाले किसानों के लिए वृष अर्थात् बैलों की वृद्धि कल्याणकारी होती है, उसी प्रकार तुम्हारे भी धर्मवृद्धि रूप आशीर्वाद भविष्य में सुफलदायी होवे।
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