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तदनन्तर उत्तम निर्दोष लग्न मुहूर्त के समय मनोरमा और सुदर्शन नामवाले उन दोनों वर-वधू का विवाह - महोत्सव बड़े भारी समारोह के साथ सम्पन्न हुआ, जिसे देखकर समस्त लोग अपूर्व आनन्द को प्राप्त हुए ||४८ ॥
श्रीमान् श्रेष्ठिचतुर्भुजः स सुषुवे
वाणीभूषणवर्णिनं घृतवरी देवी च यं
इयान् सर्गो
तेन प्रोक्त सुदर्शनोदय
श्रीयुक्तस्य सुदर्शनस्य
च
समुद्वाहप्रतिष्ठापर:
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इस प्रकार श्रीमान् सेठ चतुर्भुज जी और घृतवरी देवी से उत्पन्न हुए वाणीभूषण, बाल ब्रह्मचारी पं. भूरामल वर्तमान मुनि ज्ञानसागर - विरचित इस सुदर्शनोदय काव्य में सुदर्शन कुमार के विवाह का वर्णन करने वाला तृतीय सर्ग समाप्त हुआ ।
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भूरामले त्याह्वयं धीचयम् ।
द्वितीयोत्तरः
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