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अपनी सुकृतकारिणी माता की गोद से उठकर क्षमा को धारण करने वाले पिता के पास जाता था, तब वह लोगों के नयन कमलों को विकसित करता हुआ सभी के आदर भाव को प्राप्त करता था। सभी लोग उसे अपनी गोद में उठाकर अपना प्रेम प्रकट करना चाहते थे ॥२०॥
भावार्थ
मृदुतापुताऽभितः
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जननीजननीयतामितः श्रणनाङ्के करपल्लवयोः प्रसूनता - समधारीह सता वपुष्मता
॥२१॥
जननी-तुल्य धायों के हाथों में खिलाया जाता हुआ वह कोमल और सुन्दर शरीर का धारक बालक ऐसा प्रतीत होता था, मानों किसी सुन्दर लता के कोमल पल्लवों के बीच में खिला हुआ सुन्दर फूल ही हो ॥२१॥
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तुगहो गुणसंग्रहोचिते मृदुपल्यङ्क इवार्ह तोदिते 1 शुचिबोधवदायते ऽन्वितः शयनीयोऽसि किलेति शायितः ॥ २२॥
हे वत्स, श्री अरहन्त भगवान् के वचनों के समान असीम गुणों के भरे, सम्यग्ज्ञान के समान विशाल इस कोमल पंलग पर तुम्हें शयन करना चाहिए, ऐसा कहकर वे धायें उस बालक को सुलाया करती थीं ॥२२॥
भावार्थ - नाना प्रकार की उत्तम भावनाओं से भरी हुई लोरियाँ (गीत) गा-गा कर वे धायें उसे पालने में झुलाती हुई सुलाती थी।
सुत पालनके सुकोमले कमले वा निभृतं समोऽस्यलेः ।
इति ताभिरिहोपलालितः स्वशयाभ्यां शनकैश्च चालितः ॥२३॥
अथवा, हे वत्स कमल के समान अति सुकोमल इस पालने में भ्रमर के समान तुम्हें चुपचाप सोना चाहिए, इत्यादि लोरियों से उसे लाड़-प्यार करती हुई और अपने हाथों से धीरे-धीरे झुलाती हुई वे धायें उसे सुलाया करती थीं ॥२३॥
विधृताङ्गुलि उत्थितः क्षणं समुपस्थाय पतन् सुलक्षणः । धियते द्रुतमेव पाणिसत्तलयुग्मे स्म हितैषिणो हि सः ॥ २४॥
जब कभी उसे अंगुलि पकड़ाकर खड़ा किया जाता था, तो वह सुलक्षण एक क्षण भर के लिए खड़ा रह कर ज्यों ही गिरने के उन्मुख होता, त्यों ही शीघ्र वह किसी हितैषी बन्धुजन के कोमल कर युगल में उठा लिया जाता था ॥२४॥
अनुभाविमुनित्वसूत्रले तनु सौरभतोऽभ्यधाद्वरं
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प्रसरन् बालहठे न बालहठेन भूतले धरणेर्गन्धवतीत्वमप्यरम्
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॥२५॥
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