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श्रीमान् श्रेष्ठिचतुर्भुजः स सुषुवे भूरामलेत्याह्वयं,
वाणीभूषणवर्णिनं घृतवरी देवी च यं धीचयम् । तेन प्रोक्तसुदर्शनोदय इह व्यत्येति संख्यापको,
देशादेर्नु पतेश्च वर्णनपरः सर्गोऽयमाद्योऽनकः ॥ __ इस प्रकार श्रीमान् सेठ चतुर्भुजजी और घृतवरी देवी से उत्पन्न हुए, वाणीभूषण, बाल ब्रह्मचारी पं. भूरामल वर्तमान मुनि ज्ञानसागर विरचित इस सुदर्शनोदय काव्य में अंगदेश और उसके राजा का वर्णन करने वाला यह प्रथम सर्ग समाप्त हुआ।
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