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मुक्तामया एव जनाश्च चन्द्र- कान्ताः स्त्रियस्ताः सकला नरेन्द्रः । शिरस्सु वज्रं द्विषतामिहालं पुरं च रत्नाकरवद्विशालम् ॥२८॥
उस नगर के निवासी जन मुक्तामय थे, स्त्रियां सर्व कलाओं से सम्पन्न चन्द्रकान्त तुल्य थीं और राजा शत्रुओं के शिरों पर वज्रपात करने के कारण हीरकमणि के समान था। इस प्रकार वह चम्पापुर एक विशाल रत्नाकर (रत्नों के भण्डार समुद्र) के समान प्रतीत होता था ॥२८॥
भावार्थ जैसे समुद्र में मोतियों, चन्द्रकान्त मणियों और हीरा, पन्ना आदि जवाहरातों का भण्डार होता है, उसी प्रकार नगर के निवासी मुक्त आमय थे अर्थात् नीरोग शरीर वाले थे और मोतियों की मालाओं को भी धारण करते थे। स्त्रियों के शरीर चन्द्रमा की कान्ति को धारण करने के कारण चन्द्रकान्तमणि से प्रतीत होते थे और राजा शत्रुओं के शिरों पर वज्र प्रहार करने से हीरा जैसा था. इस प्रकार सर्व उपमाओं से साद्दश्य होने के कारण उस नगर को रत्नाकार की उपमा दी गई है।
भूपतिरित्यनन्तानुरूपमेतन्नगरं
पराभिजिद् समन्तात् । लोकोऽखिलः सत्कृतिकः पुनस्ताः स्त्रियः समस्तां नवपुष्य शस्ताः ॥२९॥
वह नगर सर्व ओर से ज्योतिर्लोक सा प्रतीत होता था. क्योंकि जैसे ज्योतिर्लोक में अभिजत् नक्षत्र होता है, उसी प्रकार उस नगर का राजा पर अभिजित् अर्थात् शत्रुओं को जीतने वाला था। आकाश में जैसे कृत्तिका नक्षत्र होता है, उसी प्रकार उस नगर के निवासी सभी लोग सत्-कृतिक थे, अर्थात् उत्तम कार्यों के करने वाले थे. और जैसे ज्योतिर्लोक में पुष्य नक्षत्र होता है, वैसे ही उस नगर में रहने वाली समस्त स्त्रियां 'न वपुषि अशस्ता:' थीं अर्थात् शरीर में भद्दी या असुन्दर नहीं थी, प्रत्युत सुन्दर और पुष्ट शरीर को धारण करने वाली थीं । इस प्रकार वह सारा नगर ज्योतिर्लोक सा ही दिखाई देता था. ॥२९॥
बलेः पुरं वेद्मि सदैव सर्वैरधोगतं व्याप्ततया सदर्पैः । पुरं शचीशस्य भृतं नभोगैः स्वतोऽधरं पूर्णमिदं सुयोगैः ॥ ३०॥
वह चम्पापुर तीनों लोकों में श्रेष्ठ था, क्योंकि बलिराजा का नगर पाताल लोक तो सदा ही दर्पयुक्त विषधर सर्पों से व्याप्त होने के कारण अधम है, निकृष्ट है । और शची इन्द्राणी के स्वामी इन्द्र का पुर स्वर्ग लोक 'नभोगैः भृतं' अर्थात् नभ (आकाश) में गमन करने वाले देवों से भरा हुआ है। दूसरा अर्थ यह कि वह 'भोगैः न भृतं' अर्थात् सुख के साधन भोग-उपभोगों से भरा हुआ नहीं है, (क्योंकि देव लोग आहार, निद्रा आदि से रहित होते हैं, अतः वहां खाने-पीने और सोने आदि की सामग्री का अभाव है और वह आकाश में अधर अवस्थित है, अतः किसी काम का नहीं है। किन्तु चम्पानगर भूमि पर अवस्थित एवं भोग-उपभोग की सामग्री से सम्पन्न होने के कारण सर्व योगों से परिपूर्ण है, अतः सर्वश्रेष्ठ है ॥३०॥
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