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सुदर्शनोदय का अन्तरङ्ग दर्शन
ऊपर सुदर्शन सेठ के चरित का सामान्य दर्शन पाठकों को कराया गया है। अब प्रस्तुत सुदर्शनोदय के भीतर वर्णित कुछ विशेषताओं का दिग्दर्शन कराया जाता है - (१) इसके निर्माता ने सुदर्शन की भील के भव से लेकर उत्तरोत्तर उन्नति दिखाते हुए सर्वोत्कृष्ट अभ्युदय
रुप निर्वाण की प्राप्ति तक का वर्णन कर इसके 'सुदर्शनोदय' नाम को सार्थक किया है। (२) इसमें द्वीप, क्षेत्र, नगर, ग्राम, हाट, उद्यान, पुरुष, स्त्री, शिशु, कुमार, गृहस्थ और मुनि का वर्णन
पूर्ण आलङ्कारिक काव्य शैली में किया गया है। (३) इसकी रचना में संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उपजाति, वियोगिनी, वसन्ततिलका,
द्रुतविलाम्बित और शार्दूलविक्रीडित छन्दों का तो उपयोग किया ही है, साथ ही देशी भाषा के प्रसिद्ध प्रभाती, काफी, होली, सारंग, रसिक, श्यामकल्य, सोरठ, छंदचाल और कव्वाली आदि के रागों में भी अनेक सुन्दर गीतों की रचना की है। जिसे पढ़ने पर पाठक का हृदय आनन्द से आन्दोलित हुए बिना नहीं रह सकता। इसके अतिरिक्त देशी रागरागनियों में गाये जाने वाले भी
अनेक गीतों की रचना इसमें द्दष्टिगोचर होती है। जिनकी सूची परिशिष्ट में दी गई है। (४) सुदर्शन के गर्भ में आने पर उनकी माता ने जो पांच स्वप्न देखे, उनका और मुनिराज के द्वारा
उनके फल का वर्णन बहुत सुन्दर किया गया है। (५) सुदर्शन के जन्म और बाल्यकाल की क्रीड़ाओं का वर्णन बहुत स्वाभाविक हुआ है, उसे पढ़ते
समय ऐसा भान होने लगता है, मानों बालक सुदर्शन सामने ही खेल रहा है। (६) सुदर्शन को लक्ष्य करके जो प्रभाती, जिन-दर्शन, जिन-पूजन आदि का वर्णन इसमें किया गया
है, वह अत्यन्त भावना पूर्ण एवं प्रत्येक गृहस्थ को अनुकरणीय है। (७) कपिला ब्राह्मणी और अभया रानी की कामोन्मत्त चेष्टाओं का वर्णन अनूठा है और देवदत्ता वेश्या
के द्वारा जो प्राणायाम, अनेकान्त और सिद्धशिला का चित्र खींचा गया है, वह तो कवि की कल्पनाओं
की पराकाष्ठा का ही द्योतक है। (८) उक्त तीनों ही स्थलों पर सुदर्शन के उत्तर, उनकी चातुरी, ब्रह्मचर्य-दृढ़ता और परम संवेग-शीलता ___ के परिचायक हैं। यहां उन्हें देकर हम प्रस्तावना का कलेवर नहीं बढ़ाना चाहते। पाठक मूल ग्रंथ
को पढ़ते हुए स्वयं ही उन्हें हृदयङ्गम करेंगे। (९) ऋषभदास सेठ के पूछने पर मुनिराज के द्वारा धर्म के स्वरुप का वर्णन, सुदर्शन के पूछने पर
गृहस्थ छ का निरुपण, स्त्रीकृत उपसर्गों की दशा में सुदर्शन का शरीर-गत विरुपता का चिन्तवन, घर जाते हुए मोहिनी माया का दर्शन, सुदर्शन मुनिराज के रुप में मुनि धर्म के आदर्श का वर्णन
और वेश्या को लक्ष्य करके किया गया श्रावक धर्म का उपदेश मननीय एवं ग्रन्थ-निर्माता के अगाध धार्मिक परिज्ञान का परिचायक है।
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