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14 (४) हरिषेण ने और सुदर्शनोदयकार ने सुदर्शन की जन्म तिथि का कोई निर्देश नहीं किया है, जबकि
नयनन्दि और सकल कीर्ति ने सुदर्शन का जन्म पौष सुदी ४ का बतलाया है। नयनन्दि तो बुधवार का भी उल्लेख किया है यथापोसे पहुत्ते सेय पक्खए हुए, बुहवारए चउत्यि तिहि संजुए ।
(ब्या.भ.प्रति प. १२ B) (५) सुभगै गुवाला जब नदी में कूदा और काठ की चोट से मरणोन्मुख हुआ, तो उसने निदान किया
कि इस मन्त्र के फल से मैं इन्हीं ऋषभदास सेठ के घर में उत्पन्न होऊं। ऐसा स्पष्ट वर्णन नयनन्दि और सकल कीर्ति करते हैं। यथाः गोवो वि णियाणे तहिं मरे वि, थिउ वणिपिय उयरे अवयरे वि।
(सुदंसणचरिउ, पत्र ११) निदानमकरोदित्थमेतन्मंत्रफलेन भो। अस्यैव श्रेष्ठिनो नृनं भविष्यामि सुतो महान् ॥
(सुदर्शन चरित, सर्ग ५ श्लोक ६५) (६) हरिषेण ने सुभग गुवाले के द्वारा शीतपरीषह सहने वाले मुनिराज की शीतबाधा को अग्नि जलाकर
दूर करने का कोई वर्णन नहीं किया है। नयनन्दि और सकल कीर्ति ने उसका उल्लेख किया है। (७) हरिषेण ने सुदर्शन के एक गुवाल भव का ही वर्णन किया है, जब कि शेष सबने भील के भव
से लेकर अनेक भवों का वर्णन किया है। (८) शेष सब चरित-कारों की अपेक्षा नयनन्दि ने सुदर्शन का चरित विस्तार से लिखा है। उनकी वर्णन
शैली भी परिष्कृत, परिमार्जित एवं अपूर्व है, सुदर्शन के जन्म समय का वर्णन करते हुए वे लिखते हैं-पुत्र के जन्म लेते ही परिजनों के कल्याण की वृद्धि हुई, जल वर्षा हुई, बनों में फल-फूल
खूब फले-फूले, कूपों में पानी भर गया, और गायों के स्तनों में दूध की खूब वृद्धि हुई। (९) नयनन्दि और सुदर्शनोदयकार ने सुदर्शन की बाल क्रीड़ाओं का बहुत सुन्दर वर्णन किया है। (१०) नयनन्दि ने लिखा है कि सुदर्शन जब आठ वर्ष का हुआ, तब पिता ने उसे गुरु को पढ़ाने
के लिए सौंप दिया। सुदर्शन ने १६ वर्ष की अवस्था होने तक गुरु से शब्दानुशासन, लिंगानुशासन, तर्क काव्य, छंदशास्त्र और राजनीति को पढ़ा। तथा मल्लयुद्ध, काष्ठकर्म, लेप्यकर्म, अग्निस्तम्भन,
इन्द्रजाल आदि विद्याओं को भी सीखा । (११) नयनन्दि ने षोडश वर्षीय सुदर्शन कुमार के शरीर सौन्दर्य का बहुत ही सजीव वर्णन किया है
और लिखा है कि गुरु के पास से विद्या पढ़ कर घर आने पर, सुदर्शन जब कभी नगर के जिस किसी भी मार्ग से निकल कर बाहर घूमने जाते, तो पुरवासिनी स्त्रियां, उसे देखकर विह्वल हो जाती और वस्त्राभूषण पहिनने तक की भी उन्हें सुध-बुध नहीं रहती थी।
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