Book Title: Sramana 2012 01
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 16
________________ आठ योगदृष्टियाँ : 9 29. समापत्ति (ध्यान या समाधि) के चार प्रकार हैं- सवितर्क, निर्वितर्क, सविचार और निर्विचार। इन चारों का समावेश सम्प्रज्ञात-समाधि (सविकल्प-समाधि या सबीज-समाधि) में हो जाता है। निर्विचार-समापत्ति की निर्मलता से अध्यात्मप्रसाद और 'ऋतम्भराप्रज्ञा' प्राप्त होती है। इसके बाद असंप्रज्ञात-समाधि (निर्विकल्प या निर्बीज-समाधि) और तदनन्तर कैवल्य (केवलज्ञान) की प्राप्ति होती है। पतंजलि के अनुसार समाधि के दो भेद हैं- सम्प्रज्ञात और असम्प्रज्ञात। सम्प्रज्ञात समाधि को सबीज समाधि भी कहते हैं क्योंकि इसमें चित्त-संस्कार पूर्णत: नष्ट नहीं होते हैं। इसके चार प्रकार हैं- वितर्कानुगत, विचारानुगत, आनन्दानुगत और अस्मितानुगत। यह सम्प्रज्ञात समाधि असम्प्रज्ञात समाधि की प्राप्ति में कारणभूत है। देखें, योगदर्शन 1.17, 18, 46, 511 ***

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