Book Title: Sramana 2012 01
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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38 : श्रमण, वर्ष 63, अंक 1 / जनवरी-मार्च 2012 3. तप्तं तप्तांशुकिरणैः शीतं शीतांशुर शिमभिः। समन्तादप्यहोरात्रमगस्त्योदयनिर्विषम्।। शुचि हंसोदकं नाम निर्मलं मलविज्जलम्। नाभिष्यन्दि न वा रूक्षं पानादिष्वमृतोपमम्॥ -अष्टांगहृदयम्, वाग्भट्ट, सूत्रस्थान 3/51-52 4. यश., पृ. 514, श्लोक 348 5. वही, पृ. 514, श्लोक 349 6. वही, पृ. 509, श्लोक 328-329 7. वही, पृ. 509, श्लोक 328-329 8. वही, पृ. 510, श्लोक 335 १. वही, पृ. 510, श्लोक 336 10. वही, पृ. 520, श्लोक 337 ' 11. वही, पृ. 510, श्लोक 338-40 12. वही, पृ. 510, श्लोक 341-344 13. वही, पृ. 513, श्लोक 345 14. वही, श्लोक 374 15. अष्टांगहृदयम्, सूत्रस्थान, 8/54 16. वही, पृ. 507 17. वही 18. वही, पृ. 509 19. वही, पृ. 508 20. वही 21. वही 22. वही 23. वही, पृ. 509 24. वही 25. वही
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