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82 : श्रमण, वर्ष 63, अंक 1 / जनवरी-मार्च 2012 फिलासॉफी' (डॉ. जे. सी. सिकदर) एवं 'उत्तराध्ययनसूत्र : एक परिशीलन' (डॉ. सुदर्शन लाल जैन) का विमोचन हुआ। इसके अतिरिक्त पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी से प्रकाशित पुस्तक 'महावीरकालीन समाज एवं संस्कृति की वर्तमान में प्रासंगिकता' (डॉ. नरेन्द्र कुमार पाण्डेय) का भी विमोचन हुआ।
3. पार्श्वनाथ विद्यापीठ दिल्ली शाखा में वीतरागता पर एक दिवसीय संगोष्ठी दिनांक 3 मार्च 2012 को अपराह्न दो बजे आत्मध्यान के प्रवर्तक युगप्रधान श्रमणसंघीय आचार्य डॉ. शिवमुनि जी म.सा. की पावन निश्रा में पार्श्वनाथ विद्यापीठ दिल्ली शाखा, रामा विहार में संस्था की कौस्तुभ जयन्ती (प्लेटिनम जूबली) के उपलक्ष्य में व्यवहार में श्रावक वीतरागता विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ परम विदुषी साध्वी डॉ. सरिता जी म.सा. एवं उनकी अन्तेवासी साध्वियों के मंगलाचरण से हुआ। पार्श्वनाथ विद्यापीठ की गतिविधियों का परिचय देते हुए पार्श्वनाथ विद्यापीठ के अध्यक्ष डॉ. शुगन चन्द जैन ने आए हुए अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने अमेरिका से पधारे डॉ. सुलेखचन्द जैन को उनके 75वें जन्म दिवस पर बधाई दी। मंच पर पूज्य आचार्यश्री जी के साथ श्रमणसंघीय मंत्री पूज्य श्री शिरीष मुनि जी म.सा., श्री शुभम् मुनि जी म.सा. एवं श्री सुव्रत मुनि जी उपस्थित थे।
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डॉ. शुगन चन्द जैन ने अपने लेख में अहिंसा, संयम, स्वाध्याय और सामायिक का सम्यक् पालन करने हेतु बल दिया। गुड़गांव से पधारे डॉ. विनेय जैन ने प्रेक्टिस ऑफ वीतरागता इन मार्डन साइन्सेस, दिल्ली के श्री सतीश कुमार जैन ने आत्मचेतना का वीतरामता की ओर क्रमिक विकास, वाराणसी से पधारे डॉ. अशोक कुमार सिंह ने श्रावक वीतरागता एवं लोभ कषाय संवरण तथा डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय, संयुक्त निदेशक पार्श्वनाथ विद्यापीठ ने दस धर्म