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74 : श्रमण, वर्ष 63, अंक 1 / जनवरी - मार्च 2012
भोगोपभोग - परिमाण, पोषधोपवास और अतिथि संविभाग। दोनों परम्पराओं में इनके क्रम में अन्तर है।
साधक श्रावक - मरणकाल के सन्निकट आने पर साधक श्रावक चारों प्रकार के आहार का त्याग करके संथारा या सल्लेखना या समाधिमरण लेता है। इसे कब ले सकते है, कब नहीं? विधि क्या है? उस समय कैसे विचार हों ? आदि का विचार शास्त्रों में किया गया है। यह मरण न तो आत्महत्या है और न ही इच्छामृत्यु |
नैष्ठिक श्रावक - पाक्षिक श्रावक जब नैष्ठिक श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं के माध्यम से वीतरागता की ओर बढ़ना चाहता है तो उसे क्रमशः इन प्रतिमाओं को धारण करना पड़ता है। पाक्षिक श्रावक जिन नियमों को अभ्यास के रूप में पालन करता था उन्हें ही यहाँ नियमपूर्वक अतिचार - रहित पालन करना होता है। श्वेताम्बरों में प्रतिमा - ग्रहण की कालसीमा भी बतलायी है जबकि दिगम्बरों में जीवनपर्यन्त पालने का नियम है। इनके क्रम के विषय में तथा नाम के विषय में श्वेताम्बरों और दिगम्बरों में थोड़ा अन्तर है, जो नगण्य है।
श्वेताम्बर परम्परा के उपासकदशांगसूत्र में आनन्द श्रावक के प्रसंग में उसके द्वारा धारण की गई ग्यारह प्रतिमाओं के कथन हैं जो इस प्रकार हैं- 1. दर्शन, 2. व्रत, 3. सामायिक, 4. पोषध, 5. कायोत्सर्ग, 6. ब्रह्मचर्य, 7. सचित्ताहार वर्जन, 8. स्वयं आरम्भवर्जन, 9. भृत्य - प्रेष्यारम्भवर्जन, 10. उद्दिष्टवर्जन और 11. श्रमणभूत । दिगम्बर परम्परा के रत्नकरण्ड श्रावकाचार आदि ग्रन्थों में श्रावक की प्रतिमाए 1. दर्शन, 2. व्रत, 3. सामायिक, 4. पोषध, 5. सचित्तत्याग, 6 रात्रिभुक्तित्याग, 7. ब्रह्मचर्य, 8. आरम्भत्याग, 9. परिग्रहत्याग, 10. अनुमतित्याग और 11. उद्दिष्टत्याग। ( श्रमणवत् इसके दो भेद हैं- क्षुल्लक और ऐलक । )
इस तरह प्रथम चार प्रतिमाओं के नाम और क्रम में कोई अन्तर नहीं है । श्वेताम्बरों की पाँचवीं नियम प्रतिमा में दिगम्बरों की छठी स्वतंत्र रात्रिभुक्तित्याग प्रतिमा समाहित है। ब्रह्मचर्य प्रतिमा श्वेताम्बरों में छठी है और दिगम्बरों में सातवीं है। सचित्तत्याग प्रतिमा श्वेताम्बरों में सातवीं और दिगम्बरों में पाँचवीं है। श्वेताम्बरों की नौवीं भृत्य-प्रेष्यारम्भत्याग परिग्रहत्याग ही है। दिगम्बरों की दसवीं अनुमतित्याग का समावेश श्वेताम्बरों के उद्दिष्टत्याग में माना गया है। दिगम्बरों की ग्यारहवीं उद्दिष्टत्याग प्रतिमा श्वेताम्बरों की ग्यारहवीं श्रमणभूत प्रतिमा है। दोनों परम्पराओं में श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं का विवरण निम्न हैसमय - मर्यादा केवल श्वेताम्बर परम्परा में है, दिगम्बर परम्परा में नहीं क्योंकि वहाँ प्रत्येक प्रतिमा जीवनपर्यन्त ली जाती है।