Book Title: Sramana 2012 01
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 47
________________ 40 : श्रमण, वर्ष 63, अंक 1 / जनवरी-मार्च 2012 अज्ञानवाद और विनयवाद में वर्गीकृत किया गया है। जैन साहित्य में तो वे प्राग्-ऐतिहासिक महापुरुष सिद्ध हैं ही किन्तु वैदिक साहित्य में भी भगवान् ऋषभदेव के सम्बन्ध में पर्याप्त उल्लेख है। प्राचीन ग्रन्थ ऋगवेद के अनुसार ऋषभ महान पराक्रमी थे। युद्ध में अजेय थे। ऋगवेद की ऋचा में उनकी (ऋषभ) स्तुति की गई है ।" यजुर्वेद में सूर्यवत, तेजस्वी, अज्ञानादि से दूर माना है।" अथर्ववेद के नवम काण्ड का चतुर्थ सूक्त ऋषभसूक्त है, जिसके 25 मंत्र ऋषभदेव की अलौकिक महत्ता का गुणगान करते हैं।" श्रीमद्भागवत 2 में और सम्भवतः उसी के आधार पर महाकवि सूरदास के काव्य में वेदों के ऋषभ और इन्द्र सम्बन्धी प्रसंगों का मनोरंजक वर्णन प्राप्त होता है। 13 इन उपर्युक्त साक्ष्यों के आधार पर यह स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है कि तीर्थकर ऋषभदेव ही मानव संस्कृति के आद्य प्रतिष्ठापक हैं। उनका उज्ज्वल प्रभावक व्यक्तित्व जन-जन में प्रतिष्ठित था । जैन साहित्य में ऋषभदेव जैनागम साहित्य में ऋषभदेव के माता-पिता, पुत्रों - पुत्रियों आदि से सम्बन्धित विवरण यत्र-तत्र प्रकीर्ण हैं। स्थानांगसूत्र में भरतचक्रवर्ती व मरुदेव का दृष्टान्त रूप में उल्लेख है।“ समवायांगसूत्र'" में ब्राह्मीलिपि को नमस्कार किया गया है । " प्रज्ञापनासूत्र” में भी 18 लिपियों का निर्देश है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में ऋषभदेव का अपेक्षाकृत विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। इसमें 15 कुलकरों का नाम - निर्देश, इनकी दण्डनीतियों का वर्णन है। इसमें द्वितीय वक्षस्कार में उनका पूरा जीवन, तृतीय वक्षस्कार में भरतचक्रवर्ती और भारतवर्ष नामकरण के हेतु का विस्तृत वर्णन है। उत्तराध्ययनसूत्र के 18वें अध्ययन में भरतचक्रवर्ती के दीक्षा का उल्लेख है 19, 23वें में ऋषभ के श्रमणों के स्वभाव का चित्रण है। 20 उन्हें धर्मों का मुख काश्य ऋषभदेव कहा गया है । 21 कल्पसूत्र में प्रसंगवश 22 24 तीर्थकरों के वर्णन के क्रम में इनके 5 कल्याणक, शिष्य-सम्पदा का भी वर्णन है। ऋषभदेव के पूर्वभवों का वर्णन कल्पसूत्र में नहीं परन्तु इनकी वृत्तियों में आया है। आचार्य शीलांकविरचित चउपन्नमहापुरिसचरिय23 में जैन परम्परा के 64 शलाकापुरुषों के चरित-वर्णन के क्रम में ऋषभ से सम्बन्धित 20 बातों का उल्लेख है। इसमें पंचमुष्टि केश - लुंचन का उल्लेख है। वर्धमानाचार्य रचित आदिनाहचरिय, सिरिउसहनाहचरिय", कहावलि आदि प्राकृत कृतियों में ऋषभचरित का विस्तार से वर्णन है। जैन संस्कृत कृतियों में जिनसेन विरचित महापुराण 25, हरिवंशपुराण 26, आचार्य हेमचन्द्राचार्य लिखित त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित 27 ऋषभदेवचरित भगवान्

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