Book Title: Sramana 2012 01
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 48
________________ श्रमण परम्परा : भगवान् ऋषभदेव से पार्श्वनाथ पर्यन्त : 41 ऋषभदेव के चरित का विस्तार से वर्णन करते हैं। इसके अतिरिक्त 24 तीर्थकरों से सम्बन्धित अन्य कृतियों में भी ऋषभदेव का वर्णन प्राप्त होता है। ऋषभदेव का वर्णन स्तोत्र साहित्य में भी प्राप्त होता है। भावप्रभसूरि विरचित 'भक्तामर समस्यापूर्तिस्तोत्र', मेघविजय उपाध्यायकृत 'भक्तामरटीका', गुणाकररचित 'भक्तामर स्तोत्रवृत्ति', जिनवल्लभसूरिकृत 'ऋषभजिनस्तुति', जिनप्रभसूरिकृत 'ऋषभजिनस्तवन', पं. आशाधर विरचित 'भरतेश्वर अभ्युदय' आदि का उल्लेख इस दृष्टि से किया जा सकता है। आधुनिक जैन साहित्य में पं. सुखलाल संघवी के 'चार तीर्थकर १, पं. कैलाश चन्द्र शास्त्री लिखित 'जैन साहित्य का इतिहास'30, आचार्य हस्तिमल्ल रचित ' जैनधर्म का मौलिक इतिहास31, डॉ0 धर्मचन्द्र जैन के 'प्रागैतिहासिक जैन परम्परा'32, 'भरत और भारत' का उल्लेख किया जा सकता है। इस प्रकार ऋषभदेव पर प्राकृत, संस्कृत, हिन्दी और गुजराती में प्रचुर साहित्य का प्रणयन किया गया है। ऋषभदेव आधुनिक विद्वानों की दृष्टि में स्वर्गीय डॉ0 रामधारी सिंह 'दिनकर' का कथन है कि मोहनजोदड़ो की खुदाई में प्राप्त मुहरों में से एक मुहर में वृषभ तथा दूसरी तरफ ध्यानस्थ योगी जो जैनधर्म के आदि तीर्थकर ऋषभदेव थे दिखाया गया है। उनके साथ भी योग की परम्परा इसी प्रकार सम्बद्ध है तथा बाद में शिव के साथ समन्वित हो गई। अतः कई जैन विद्वानों के अभिमत में ऋषभदेव वेदोल्लिखित होने पर भी वेदपूर्व हैं। डॉ0 फूहरर ने राजा कनिष्क और हुविस्क शासनकाल के (2 हजार वर्ष पूर्व) मथुरा संग्रहालय से उपलब्ध शिलालेखों का गम्भीर अध्ययन कर अभिमत दिया कि प्राचीन युग में ऋषभदेव का अत्यधिक महत्त्व था व जनता दिल से अर्चना करती थी। सिन्धु घाटी की आर्येत्तर सभ्यता के ध्वंसावशेष तथा उत्खननों से सिद्ध होता है कि जैनधर्म के आदि संस्थापक ऋषभदेव थे। ऋग्वेद हम्मुराबी (ई0पू0 2123-2018) के अभिलेखों, सिन्धु सभ्यता, सुमेरु सभ्यता एवं ईरान में वृषभ को देव रूप में पूजा गया। भारत की आर्येत्तर सिन्धु सभ्यता में बैल की मृण्मय मूर्तियाँ एवं मुद्रांकित श्रेष्ठ आकृतियों से ऋषभ देव की महत्ता सर्वविदित है। इस प्रकार विशिष्ट महापुरुष ऋषभ के चरणों में जैन, बौद्ध, वैदिक, आधुनिक तथा पाश्चात्य विद्वानों ने समुचित साक्ष्यों के आधार पर अपनी अनन्त आस्था के सुमन समर्पित किये हैं।

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