Book Title: Sramana 2012 01
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 33
________________ 26 : श्रमण, वर्ष 63, अंक 1 / जनवरी-मार्च 2012 23. डा. पुष्पा गर्ग 'आध्यात्मिक उन्नति में दान की साधनरूपता' कल्याण, दानमहिमा- अंक, गीता प्रेस, गोरखपुर, वर्ष 85, संख्या 1, जनवरी 2011, पृ. 477-480 24. स्थानांगसूत्र, सम्पा. मधुकरमुनि, आगम प्रकाशन समिति, व्यावर (राज.)स्थान 10, सूत्र 135, 25. स्थानांगसूत्र, सम्पा. मधुकरमुनि, आगम प्रकाशन समिति, व्यावर (राज.)स्थान 10, सूत्र 135, 26. वही, स्थान 10, सूत्र 136, 27. प्रो. सागरमल जैन, भारतीय आचार-दर्शन-एक तुलनात्मक अध्ययन, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर एवं प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर, 2010, पृ. 283- 2851 28. वही, पृ. 283- 2851 29.समयप्राभृत, गाथा 253, आचार्य कुन्दकुन्द, भारतवर्षीय दिगम्बर जैन प्रकाशिनी संस्था, काशी 19151 30. जिनप्रणीत धर्मामृते नित्यानुरागता वात्सल्यम् -6,24,1 ,तत्त्वार्थवार्त्तिक, अकलंकदेव,भारतीय ज्ञानपीठ,काशी 1953, 31. आचारसार, वीरनन्दि, माणेक चन्द दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, मुम्बई 1917, 3. 64-65 32. चारित्रसार, चामुण्डराय, मुम्बई 1917, 43.1, 33. चादुव्वण्णे संघे चदुगदिसंसारणित्थरणभूदे । वच्छल्लं कादव्वं वन्दे गावी जहा गिद्धी।। अधिकार 5, गाथा 66,मूलाचार, आचार्य वट्टकर, सम्पा. डा. फूलचन्द्र जैन प्रेमी एवं डा. मुन्नी जैन, भारतवर्षीय अनेकान्त जैन परिषद् 1996, 34. अस्थि हीनं यथा कीटं सूर्यो दहति तेजसा, ___ तथा दहति धर्मश्च प्रेमशून्यं नृकीटकम्।। परिच्छेद 8, श्लोक,7, कुरलकाव्य, झाँसी 1953, 35. मतेनैकेनापि तीर्थकरनामकर्मबन्धो भवति।- 57.1,चारित्रसार,चामुण्डराय, 36. मोहणीयक्खएण वीयराओ-धवला पु. 9, वीरसेन, सम्पा. डा. हीरा लाल जैन, जैन साहित्योद्धारक फण्ड कार्यालय, अमरावती,1939,पृ. 118, 37. प्रवचनसार, आचार्य कुन्दकुन्द, सम्पा. आ. नेमिनाथ उपाध्ये,परमश्रुत प्रभावक मण्डल, श्रीमद्राजचन्द्र आश्रम, अगास (मुज.), 1984, गाथा 89 की 90 वृत्ति। 38. पाइअसहमहण्णवो, प्राकृत टेक्स्ट सोसाइटी, वाराणसी, पृ. 235, 39. आवश्यकहारिभद्रीयवृत्ति, हरिभद्र, आगमोदय समिति, मेहसाना 1917, 109, पृ. 77, 40. पंचसंग्रह-स्वोपज्ञवृत्ति, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, 1960 2-123, पृ. 25,

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