Book Title: Sramana 2012 01
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 39
________________ शरद 32 : श्रमण, वर्ष 63, अंक 1 / जनवरी-मार्च 2012 ऋतु खाद्य-पेय सामग्री शिशिर ताजा भोजन, खीर, उड़द, इक्षु, दधि, घृत और तेल से बने पदार्थ पुरन्ध्री। वसन्त जौ और गेहूँ से बना प्रायः रुक्ष भोजन। ग्रीष्म सुगन्धित चावलों का भात, घी डली हुई मूंग की दाल, विष (कमल नाल), किसलय (मधुर पल्लव), कन्द, सत्तू, पानक (ठंडई), आम, नारियल का पानी तथा चीनी मिश्रित दूध या पानी। वर्षा पुराने चावल, जौ तथा गेहूँ से बने पदार्थ। घृत, मूंग, शालि, लप्सी, दूध से निर्मित पदार्थ खीर आदि परवल, दाख (अंगूर), ऑवला, ठंडी छाया, मधुर रस वाले पदार्थ, कन्द, कौंपल, रात्रि में चन्द्र किरण आदि। उपर्युक्त विवेचन के पश्चात् सोमदेव ने ऋतुओं के अनुसार रसों का सेवन कम-ज्यादा मात्रा में करने का निर्देश दिया है। उनके अनुसार वैसे छहो रसों का व्यवहार सर्वदा सुखकर होता है।' भोजन के विषय में और भी अनेक प्रकार की ज्ञातव्य बातों का उल्लेख यशस्तिलक में किया गया है जिनका अतिसपेक्षतः यहाँ उल्लेख किया जा रहा है। मूल ग्रंथ में पृ0 510 पर श्लोक 330 से 344 तक विशद् रूप से इसका विवेचन किया गया है। आहार, निद्रा और मलोत्सर्ग के समय शक्ति तथा बांधायुक्त मन होने पर अनेक प्रकार के बड़े-बड़े रोग हो जाते हैं।' भोजन करते समय उच्छिष्ट भोजी, दुष्टप्रवृत्ति, रोगी, भूखा तथा निन्दनीय व्यक्ति पास में नहीं होना चाहिए। विवर्ण, अपक्व, सड़ा, गला, विगन्ध, विरस, अतिजीर्ण, अहितकर तथा अशुद्ध अन्न नहीं खाना चाहिए।' हितकारी, परिमित, पक्व, क्षेत्र, नासा तथा रसना इन्द्रिय को प्रिय लगने वाला. सुपरीक्षित भोजन न जल्दी-जल्दी और न धीरे-धीरे अर्थात् मध्यम गति से करना चाहिए। विषयुक्त भोजन को देखकर कौआ और कोयल विकृत शब्द करने लगते हैं, नकुल और मयूर आनन्दित होते हैं, क्रौन्च पक्षी अलसाने लगता है, ताम्रचूड़ मुर्गा रोने लगता है, तोता वमन करने लगता है, बन्दर मलत्याग कर देता है, चकोर के नेत्र लाल हो जाते हैं, हंस की चाल डगमगाने लगती है और भोजन पर

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