Book Title: Sramana 2011 04
Author(s): Sundarshanlal Jain, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 30
________________ जैन ज्योतिष में वार ( दिन) प्रवृत्ति का वैशिष्ट्य प्रो० रामचन्द्र पाण्डेय वार अर्थात् दिन कब से माना जाए अर्धरात्रि से अथवा सूर्योदय काल से अथवा रात्रि के प्रारम्भ से? इस विषय में तीन मत प्रचलित हैं- १. सूर्योदय काल से (भारत में) तथा २. अर्धरात्रि से (पाश्चात्य जगत् में) । तीसरा मत संक्रान्तियों के आधार पर बना है जिसका उल्लेख जैन ग्रन्थों में मिलता है जो कि काल गणना में उपयोगी है। इसी बात को विद्वान् ज्योतिषज्ञ ने यहाँ प्रकट किया है। यह ज्योतिष गणितीय तृतीय मत का सिद्धान्त जैनेतर सिद्धान्तों में भी प्रचलित है जिसका प्रयोग विशेष अवसरों पर किया जाता है। प्रथम दो मत तो दिन का प्रयोग कब किया जाय मात्र इसका निर्देश करते हैं जबकि तृतीय मत राशियों की स्थिति से सम्बद्ध होने से गणितीय ज्योतिष के प्रयोग में उपयोगी है। - सम्पादक सम्पूर्ण संसार ही नहीं अपितु समस्त ब्रह्माण्ड ही काल की सीमा में आबद्ध है। यही कारण है कि समस्त शास्त्रों ने अनेक प्रकार से काल की महिमा का वर्णन किया है । 'कालः सृजति भूतानि', 'कालः संहरते प्रजाः', 'कालाधीनं जगत्सर्वं' इत्यादि सूक्तियाँ सुप्रसिद्ध हैं । किन्तु इनके स्थूल व सूक्ष्म विभागों की गणना ज्योतिष शास्त्र का ही प्रतिपाद्य विषय रहा है। काल को परिभाषित करते हुये सूर्यसिद्धान्त कहता है - काल दो प्रकार के होते हैं एक लोक का विनाश करने वाला, दूसरा गणना करने वाला। गणना योग्य काल भी दो प्रकार के होते हैं - १. स्थूल, जिसे मूर्तकाल तथा २. सूक्ष्म, जिसे अमूर्तकाल कहते हैं । स्थूल काल व्यवहार योग्य होते हैं । यथा घटी, पल, विपल या घण्टा, मिनट, सेकेण्ड तथा इनसे बड़े काल खण्ड की इकाइयाँ। घटी आदि सूक्ष्म काल खण्डों की इकाइयाँ इतनी छोटी होती हैं कि उनका व्यवहार सम्भव नहीं है। तथापि उनके परिमाणों का विचार वैदिक वाणियों में विस्तृत रूप से उपलब्ध है, जिसका पल्लवन ज्योतिष शास्त्र में सोपपत्तिक किया गया है। भारतीय ज्योतिष में नव प्रकार के काल-मानों का उल्लेख है, जिनमें से केवल सौर, चान्द्र, सावन एवं नाक्षत्र - इन चार प्रकार के कालमानों का उपयोग हम अपने दैनिक जीवन में करते हैं। सौर मान से ऋतु, अयन तथा वर्ष आदि काल की बड़ी इकाइयों की गणना, चान्द्रमान से तिथि एवं मासों की गणना तथा सावन मान से दिन की गणना होती है। सावन - दिन को पृथ्वी का दिन भी कहा जाता है क्योंकि इसका सीधा सम्बन्ध पृथ्वी की गति से है । नाक्षत्र मान से काल की छोटी इकाइयों घटी, पल, विपल आदि की गणना होती है।" यहाँ सभी काल खण्डों का उल्लेख न करते हुये केवल सावन वार का ही विवेचन करेंगे।

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