Book Title: Sramana 2011 04
Author(s): Sundarshanlal Jain, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 113
________________ । साहित्य-सत्कार जैन धर्म का इतिहास (संक्षिप्त संस्करण भाग १ से ४) लेखक- आचार्य श्री हस्तीमल जी महाराज, प्रकाशक- सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर, संस्करण- प्रथम, २०१०, प्रत्येक भाग का मूल्य रु० ७५/'जैन धर्म का मौलिक इतिहास' आचार्य हस्तीमल जी द्वारा रचित एक ऐतिहासिक ग्रन्थ है जिसे विषय विवेचन की दृष्टि से ४ भागों में प्रकाशित किया गया है। प्रस्तुत संस्करण उस ग्रन्थ का संक्षिप्तीकरण है। इस ग्रन्थ के प्रथम भाग (तीर्थंकर खण्ड) के सम्पादक मण्डल हैं- आचार्य देवेन्द्रमुनि शास्त्री, मुनि लक्ष्मीचन्द जी, पं० शशिकान्त झा, डॉ० नरेन्द्र भानावत और गजसिंह राठौड़। इसके शीर्षक से ही विदित है कि इसमें २४ तीर्थंकरों के विषय में विवेचन किया गया है। प्रसंगवश कुलकर एवं चक्रवर्ती के विषय में भी बतलाया गया है। अन्त में प० पू० आचार्य श्री हस्तीमल जी का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। द्वितीय भाग (केवली व पूर्वधर खण्ड) के सम्पादक हैं- गजसिंह राठौड़ तथा अन्य सम्पादक मण्डल में हैं- मुनि लक्ष्मीचन्द जी, आचार्य देवेन्द्रमनि जी, पं० शशिकान्त झा, डॉ० नरेन्द्र भानावत तथा प्रेमराज वोगावत। इसमें जैनधर्म के प्रसिद्ध इन्द्रभूति गौतम आदि केवलज्ञानियों तथा तदुत्तरवर्ती पूर्वधर आचार्यों का परिचय दिया गया है। केवली काल से पूर्वधर काल तक की साध्वियों का भी परिचय दिया गया है। अन्त में श्रावक श्री पारसमल जी सुराणा का परिचय दिया गया है जिन्होंने इस ग्रन्थ के चारों भागों के संक्षिप्तीकरण, अंग्रेजी अनुवाद और प्रकाशन में सहयोग किया है। तृतीय भाग (सामान्य श्रुतघर, खण्ड-१) के सम्पादक हैंगजसिंह राठौड़, प्रेमराज वोगावत तथा अन्य सम्पादक मण्डल में हैं- आचार्य देवेन्द्रमुनि, पं० शशिकान्त झा, डॉ. नरेन्द्र भानावत। इस खण्ड में सामान्य श्रुतधरों का परिचय दिया गया है। चतुर्थ भाग (सामान्य श्रुतधर, खण्ड-२) के सम्पादक हैं- गजसिंह राठौड़ और प्रेमराज वोगावत, परामर्शदाता हैं- आचार्य देवेन्द्रमुनि और डॉ० नरेन्द्र भानावत। यह भाग भी सामान्य श्रुतधरों के परिचय से ही सम्बन्ध रखता है। इसमें परवर्ती श्रुतधरों का परिचय दिया गया है। अन्त में धर्मोद्धारक लोकाशाह का परिचय देते हुए विक्रम सं० १३५७ से १३८२ तक की राजनैतिक परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है। चारों भाग बहुत ही महत्त्वपूर्ण एवं ऐतिहासिकता को लिये हुए हैं। जैनधर्म के इतिहास को जानने के लिए चारों ही भाग बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। यह ग्रन्थ सभी पाठकों के लिए पठनीय एवं संग्रहणीय है। डॉ० राहुल कुमार सिंह

Loading...

Page Navigation
1 ... 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120