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साहित्य-सत्कार : १०५
आदि तीर्थंकर ऋषभदेव (जीवनवृत्त, स्वरूप एवं शिव के साथ तादात्म्य) लेखक- डॉ० धर्मचन्द्र जैन (पूर्व प्रोफेसर, संस्कृत एवं प्राच्य विद्या संस्थान, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय) एवं डॉ० संकठा प्रसाद शुक्ल (पूर्व प्रोफेसर, प्रा० भा० इ० सं० एवं पुरातत्त्व विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय), प्रकाशक- सरस्वती नदी शोध संस्थान, हरियाणा (इतिहास संकलन - योजना ), संस्करण- प्रथम, २००७, मूल्य रु० १५०/-, पृ० १८४ ।
प्रस्तुत ग्रन्थ अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण कृति है जिसमें जैन आदि तीर्थंकर प्रभु ऋषभदेव के जीवनवृत्त पर विशेष प्रकाश डाला गया है, साथ ही ऋषभदेव एवं ऋषभावतार कैलाशपति शंकर (शिव) के साथ तादात्म्य स्थापित करने का प्रयास किया गया है। दोनों ही मूर्धन्य विद्वानों ने गहन शोध एवं अध्ययन करके प्राचीन गन्थों के प्रबल प्रमाण एवं युक्तियुक्त तथ्यों को प्रस्तुत करके महत्त्वपूर्ण समन्वयात्मक कार्य किया है।
विद्वज्जनों का मन्तव्य है कि यह ग्रन्थ ब्राह्मण एवं श्रमण दोनों संस्कृतियों को जोड़ने में सहायक होगा साथ ही भावी शोधार्थियों के लिए मार्गदर्शक भी बनेगा। यह ग्रन्थ सात अध्यायों में विभक्त है इसमें तीन परिशिष्ट भी हैं, इसमें ऋषभदेव का समयवृत्त, जीवन, विभिन्न मुद्राओं में उपस्थित प्रतिमाएँ, उनके सहस्रनाम आदि विषयों को लेकर विवेचन किया गया है। इनमें तीर्थंकर ऋषभदेव के सहस्रनामों (१००८ नामों) का उल्लेख एवं उन नामों का भगवान् शिव के सहस्रनामों के साथ तादात्म्य दर्शाने का प्रयास किया गया है। ऋषभदेव के सहस्रनाम - स्तवन में प्रयोग हुए कुछ पदों का सम्बन्ध विष्णु, शिव एवं ब्रह्मा के साथ भी है जिसका उल्लेख यहाँ किया गया है। परिशिष्ट - १ में जैनधर्म के कतिपय पारिभाषिक शब्दों को दिया गया है तथा परिशिष्ट-२ में कल्पवृक्ष तथा भोगभूमि की चर्चा की गई है एवं परिशिष्ट- ३ में सन्दर्भसूची के साथ-साथ भगवान् ऋषभदेव की विभिन्न मुद्राओं में अवस्थित प्रतिमाओं के चित्र दिये गए हैं। लेखन में सर्वत्र समन्वयात्मक प्रयास दृष्टिगोचर होता है । यह ग्रन्थ सभी पाठकों एवं जैनधर्म के जिज्ञासुओं के लिए पठनीय एवं संग्रहणीय है।
प्रो० सुदर्शन लाल जैन
सचित्र भगवान् महावीर जीवन चरित्र, लेखक- श्री पुरुषोत्तम जैन एवं रवीन्द्र जैन, प्रकाशक- २६वीं महावीर जन्म कल्याणक शताब्दी संयोजिका समिति, पंजाब, सम्पादिका - साध्वी डॉ० स्मृति जी महाराज, मूल्य- रु० ५००/पृ० २७४।
लेखकद्वय ने विषय की दृष्टि से इसे पाँच खण्डों में विभक्त किया है। प्रथम खण्ड