Book Title: Sramana 2011 04
Author(s): Sundarshanlal Jain, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 31
________________ २० : श्रमण, वर्ष ६२, अंक २ / अप्रैल-जून-२०११ सामान्य रूप से रवि-सोम-भौम आदि वारों की कल्पना भारतीय ज्योतिष की भूकेन्द्रिक ग्रहकला के आधार पर की गयी है। इन रव्यादि वारों की अवधि सामान्यतया दो सूर्योदयों के मध्यकाल के रूप में मानी गयी है। इससे स्पष्ट है कि सूर्योदय काल से रवि आदि वारों का प्रारम्भ होता है। किन्तु भारतीय ज्योतिष में वारप्रवृत्ति दो प्रकार से कही गयी है। एक सिद्धान्त मध्यरात्रि से वार की प्रवृत्ति का निर्देश करता है। प्रथम सिद्धान्त का निरूपण करते हुये सूर्यसिद्धान्त कहता है 'रेखादेश (शून्य देशान्तर) से पूर्ववर्ती क्षेत्रों में अर्धरात्रि के बाद तथा पश्चिमस्थ देशों में अर्धरात्रि से पूर्व वार प्रवृत्ति होती है।'३ स्पष्ट आशय यह है कि जिस समय रेखादेश में अर्धरात्रि होती है उसी समय वार प्रवृत्ति मानी गयी है। आजकल भारत के अतिरिक्त सम्पूर्ण विश्व इसी सिद्धान्त का अनुपालन करता है। दूसरे सिद्धान्त का निरूपण करते हुए आचार्य भास्कर ने कहा है लंकानगर्यामुदयाश्च भानोस्तस्यैववारे प्रथमं बभूव । मधोः सितादेर्दिनमासवर्षयुगादिकानां युगपत्प्रवृत्तिः।। जब सृष्टि के आरम्भ में लंका नगरी (रेखादेश में) में प्रथम बार सूर्योदय हुआ उसी दिन सूर्योदय काल से चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, दिन (वार), मास, वर्ष, युग आदि की एक साथ प्रवृत्ति हुई। भारतवर्ष में आज भी इस नियम का व्यवहार होता है, किन्तु अन्यत्र रात्रि से ही वार प्रवृत्ति की गणना होती है। जैनों की अभिनव मान्यता- इस प्रसंग में जैन आचार्यों ने एक अभिनव परम्परा का उल्लेख किया है। जैन आचार्यों के मतानुसार वार-प्रवृत्ति संक्रान्ति के अनुसार भिन्न-भिन्न कालों में होती है। यथा- सूर्य जब वृश्चिक, कुम्भ, मीन और मेष राशियों में हो तो रात्रि के आरम्भ से वृष, धनु, कर्क और तुला राशियों में हो तो मध्यरात्रि से तथा मकर, मिथुन, कन्या और सिंह राशियों में सूर्य हो तो रात्रि के अन्त अर्थात् सूर्योदय से वारप्रवृत्ति होती है।' श्री उदयप्रभसूरि ने उक्त नियमों के अतिरिक्त अपना एक नया सिद्धान्त प्रस्तुत करते हुये लिखा है वरादिरुदयादूर्ध्व फ्लैर्मेषादिगे रवौ तुलादिगे त्वस्त्रिंशत् तद्युमानान्तरार्धजैः। इसका आशय है कि तीस घटी और दिनमान के अन्तरार्ध तुल्य घटी फल दिनमान के नियामक होते हैं। मेषादि छ: राशियों में सूर्य के रहने पर अन्तरार्ध तुल्य सूर्योदय

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