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आगम-प्रणीत आहारचर्या और शाकाहार : ४५
अहिंसा-भावना की साकार अभिव्यक्ति शाकाहार जीवन-शैली है। मनुष्य, पशुपक्षी और वनस्पति का परस्पर अटूट सम्बन्ध है। मात्र भोजन के स्वाद के लिए प्रकृति के तालमेल को बिगाड़ना मूर्खता ही है। विश्व के खाद्य संकट और बढ़ती हुई आबादी की समस्या का समाधान सात्विक आहार एवं शाकाहार से प्राप्त हो सकता है। प्रोफेसर रामजी सिंह ने ठीक ही कहा है कि वैज्ञानिक, आर्थिक, नैतिक, आध्यात्मिक एवं सौन्दर्यबोध की दृष्टि से शाकाहार ही श्रेयस्कर है। शाकाहार पोषक तत्त्वों का भण्डार है और मानव शरीर के लिए प्राकृतिक भोजन है, जबकि मांसाहार प्रकृति के विपरीत है। आज विश्व में शाकाहार का जितना विश्लेषण हुआ है उससे प्रकृति के संरक्षण की संभावनाएं बढ़ी हैं। विभिन्न खोजों के आधार पर शाकाहार के पक्षधरों ने अण्डे के सम्बन्ध में किए गए दुष्प्रचार (अण्डा शाकाहारी है) को गलत साबित किया है। शाकाहार सात्विक विचार और आचार का भी आधार है। जैन आगमों में तो आहार को एक तप ही माना गया है। यदि व्यक्ति का आहार सुधर जाए तो उसका जीवन सुधरने में अधिक समय नहीं लगेगा। शायद यही कारण है कि जैन ग्रन्थों में आहार को सुधारने पर विशेष बल दिया गया है। मनुष्य की क्रूर भावनाओं का उन्मूलन शाकाहार से ही सम्भव है। शाकाहार से ही मनुष्य के मन में निर्मलता का संचार होता है। शाकाहार वास्तव में समता की साधना है। इस तरह जैन आगमों में प्राप्त आहार सम्बन्धी सभी तथ्यों का यदि पूर्ण विश्लेषण किया जाए तो पर्यावरणसंतुलन के लिए अनेक सूत्र प्राप्त हो सकते हैं। सन्दर्भ सूची १. डॉ० जगदीश चन्द्र जैन, जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, चौखम्भा,
वाराणसी २. (क) डॉ० जे० सी० सिकदर, भगवती सूत्र- ए स्टडी, वैशाली (ख) डॉ० सुदर्शन लाल जैन, उत्तराध्ययन सूत्र का समीक्षात्मक परिशीलन,
वाराणसी (ग) पं० परमेष्ठीदास जैन, आचारांग का दार्शनिक अध्ययन, पी० वी०
रिसर्च इन्स्टीट्यूट, वाराणसी ३. आचारांगसूत्र, ९/१/५२.५३, ४. उत्तध्ययनसूत्र, अध्याय-२६, गाथा ३३-३४ ५. वही, अध्याय-३५, गाथा १०