Book Title: Sramana 2011 04
Author(s): Sundarshanlal Jain, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 57
________________ ४६ : श्रमण, वर्ष ६२, अंक २ / अप्रैल-जून-२०११ ६. जल-धन्ननिस्सिया जीवा, पुढवी-कट्ठनिस्सिया।, हम्मन्ति भत्तपाणेसु, तम्हा भिक्खू न पायए। वही, ३५/११ ७. अलोले न रसे गिद्धे, जिब्मादन्ते अमुच्छिए। न रसट्ठाए भुंजिज्जा, जवणट्ठाए महामुणी॥ वही, ३५/१७ ८. दशवैकालिक सूत्र, सम्पादक- युवाचार्य महाप्रज्ञ, लॉडनू, १९७४, पृ०. १०७ ९. वही, अध्याय-४, सूत्र १६ १०. जयं चरे जयं चिठे जयमासे जयं सए। जयं भुजंतो भासतो पाव-कम्मं न बंधई। वही, ४/८ ११. पुरओ जुगमायाए पेहमाणो महिं चरे। वज्जतो बीयहरियाई, पाणे अ दगमट्टियं ॥ वही, ५/३ १२. संमद्दमाणी पापाणि, बीआणि हरिआणि या असंजमकर नच्चा, तारिसं परिवज्जए। वही, ५/२९ १३. वही, ५/७० १४. वही, ५/७३, अ० चू०, पृ० ११८ १५. वयं च वित्तिं लब्भामो न य कोइ उवहम्मई। अहागडेसु रीयंति पुप्फेसु भमरा जहा। वही, १/४

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