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३८ : श्रमण, वर्ष ६२, अंक २ / अप्रैल-जून-२०११
है। दुर्बल, ग्लान (शोकजन्य पीडायुक्त या क्षीण हर्ष वाले), व्याधित/बाधित (कोढ़, ज्वर, श्वास, दाह, अतिसार आदि से पीड़ित व्याधित और लू आदि से बाधित), रोगी (सामान्य ज्वरादि से पीड़ित) और आतुर (असाध्य रोग ग्रस्त) के भेद से रोगी पाँच प्रकार के होते हैं।९३ वैद्यों या चिकित्सकों के प्रकार सामान्यतया चिकित्सक या वैद्य दो प्रकार के होते हैं- (१) वरिष्ठ या रोग विशेषज्ञ, (२) कनिष्ठ/लघु/वैद्यकपुत्र- सामान्य रोग विशेषज्ञ। विपाकसूत्र में चार प्रकार के वैद्य माने गए हैं- (१) वैद्य- वैद्यकशास्त्र और चिकित्सा दोनों में निपुण हो, वह वैद्य कहलाता है, (२) ज्ञायक- केवल शास्त्र कुशल हो, वह ज्ञायक कहलाता है, (३) चिकित्सक- मात्र चिकित्सा प्रवीण हो, वह चिकित्सक कहलाता है, (४) धन्वन्तरि- जो आयुर्वेद के अष्टाङ्ग में पूर्ण सिद्धहस्त हो जिसका स्पर्श सुखप्रद, शुभ, शिव और लघु हो, वह धनवन्तरि वैद्य कहलाता है। रोगोपचार की विधियाँ किस रोग का किस विधि से उपचार करना चाहिए इसका भी 'विपाकसूत्र' के अध्ययनों में सम्यक् प्रतिपादन है। यथा- १. अभ्यंग (तैलादि मर्दन), २. उद्वर्तन (उबटन मलना), ३. स्नेहपान (घृतादि स्निग्ध पदार्थों का पान करना), ४. वमन (उल्टी, कै कराना), ५. विरेचन (गुदा द्वारा मल निस्सारण), ६. स्वेदन (पसीना देना), ७. अवदाहन (दाह देना), ८. अवस्नान (औषधि मिश्रित जल से स्नान करना), ९. अनुवासना (जो बस्ति प्रतिदिन दी जाये), १०. बस्तिकर्म (चर्म वेष्टन द्वारा सिर अंगों को स्नेहपूरित करना या गुदा में वर्ति बत्ती का प्रक्षेप करना), ११. निरूह-बस्ति (दोषों का नाश करने के कारण निरूह-बस्ति कहते हैं इसमें क्वाथ और दूध के द्वारा बस्ति दी जाती है और अनुवासना में घी, तैलादि द्वारा), १२. शिरावेध (शिरा/नाड़ी का वेधन करना), १३. तक्षण (साधारण कर्तन कर्म), १४. प्रतक्षण (विशेष कर्तन कर्म अर्थात् त्वचा का सूक्ष्म विदारण करना), १५. शिराबस्ति (सिर में चर्मकोश बाँधकर तैल से पूरित करना), १६. तर्पण (स्निग्ध पदार्थों से शरीर को तृप्त करना), १७. फूटपाक (अग्नि में पकाई औषधि को फूटपाक कहते हैं), १८. छल्ली (छाल), १९. मूल (जड़), २००. कन्द (मूली, गाजर, जमीकन्दादि), २१. पत्र (वृक्ष-लतादि के पत्ते), २२. पुष्प, २३. फल, २४. बीज, २५. शिलिका (चिरायता), २६. गुलिका (औषधि की गोली), २७.
औषधि, २८. भैषज्य (अनेक औषधियों से तैयार की गयी औषधि को भैषज्य कहते हैं), २९. अवपीडन (दबाना), ३०. कवलग्राह, ३१. शल्योद्धरण (यन्त्र