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विपाकसूत्र में वर्णित चिकित्सा विज्ञान : ३९
प्रयोग), ३२. छर्दन (छेद करना या छेदन), ३३. गलानादि । १७
उपर्युक्त आयुर्वेदिक उपचार विधियाँ ही एलोपैथी में नामान्तर एवं परिष्कृत रूप में उपलब्ध हैं। यथा उद्वर्तन - ट्यूब मलना या लगाना, वमन स्टमकवॉश करना, विरेचन- एनीमा लगाना, स्वेदन- हीट देना, अवराहन - कोमोथेरेपी आदि द्वारा सेक करना, जलानादि, शिरावेध (सर्जरी करना), तर्पण - ग्लूकोज आदि चढ़ाना, गुटिका - टेबलेट, कैप्सूलादि, अवपीडन इलेक्ट्रिक शाक, एक्यूप्रेसर, शल्योद्धकरण – यन्त्र द्वारा आपरेशन करना आदि।
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इस प्रकार निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि आज से २६०० वर्ष पूर्व भारतीय चिकित्सा पद्धति अत्यन्त समुन्नत एवं विकसित थी । 'विपाकसूत्र' चिकित्सा विज्ञान की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । यह हमें न केवल स्वस्थ रहने के महत्त्वपूर्ण सूत्र प्रदान करता है अपितु मांसाहार के कुपरिणामों एवं दुष्कृत्यों के कुफलों से परिचित कराकर अहिंसक जीवन शैली अपनाने का महत्त्वपूर्ण उपदेश भी देता है। जीवन में आध्यात्मिकता के महत्त्व की प्रतिष्ठा भी करता है।
सन्दर्भ सूची
१. प्रज्ञापनासूत्र, इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थानपद, प्रश्न- १४९७-३
२. अहोणं भंते । सुबाहुकुमारे इट्ठे इट्ठरूवे, कंते कंतरूवे, पिए पिएरूवे मणुण्णे, मणुण्णरूवे, मणामे, मणामरूवे, सोम्मे, सुभगे पियदंसणे, सुरूवे, बहुजणस्स वि य ण भंते । सुबाहुकुमारे इट्ठे जाव सुरूवे, साहुजणस्स वियणं भंते। सुबाहुकुमारे जाव सुरूवे। सुबाहुकुमारेणं भंते । इमा एयारूवा उराला माणुस्सा रिद्धी किण्णा लद्धा ? किण्णा पत्ता? किण्णा अभिसमण्णागया ? को वा एस आसी पुव्वभवे जाव अभिसमण्णागया?
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जाव अड
एवं खलु गोयमा......! हत्थिगाउरे णयरे सुभुहे णामं गाहावई परिवसई, काणं तेणं समए णं धम्मधोसाणं थेराणं अन्तेवासी सुदत्ते णामं अणगारे उराले जाव तेउलेस्से, मासं मासेणं खममाणे विहर ..... । सुमुहस्स गाहावइस्स गिहं अणुपविट्ठे । तए णं से सुमुहे गाहावई सुदत्तं अणगारं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता इट्ठतुट्ठ आसणाओ अब्मट्ठेइ .....। सयइत्थेणं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं पडिलाभेस्सामित्ति..... । विपाकसूत्र द्वितीय श्रुतस्कन्ध, मधुकर मुनि अध्ययन - १, सूत्र- ७, ८, १०
३. तंसि णं विजयवद्धमाणखेडंसि एक्काई णामं रट्ठकूडे होत्था अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे। वही, प्रथम श्रुतस्कन्ध अध्ययन - १, सूत्र- १४
तणं से एक्काई रट्ठकूडे एयकम्मे, एयप्पहाणे, एयविज्जे, एयसमायारे, सुबहु पावकम्मं कलिकलुषं समज्जिणमाणे विहर। वही, सूत्र- १५