Book Title: Sramana 2011 04
Author(s): Sundarshanlal Jain, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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३४ : श्रमण, वर्ष ६२, अंक २ / अप्रैल-जून-२०११
१९. 'अथमतं-मोक्षार्थं ध्यानं क्रियते, न चाधकाले मोक्षोऽस्तिः ध्यानेन् किं
प्रायोजनम् ? नैवं अद्यकालेऽपि परम्परया मोक्षोऽस्ति। कथ मितिचेन्, स्वशुद्धात्मभावनाबलेन संसारस्थितिं स्तोकं कृत्वा देवलोकं गच्छति, तस्मादागत्य मनुष्यभवे रत्नत्रयभावनां लब्ध्वा शीघ्रं मोक्षं गच्छतीति।'
द्रव्यसंग्रह, ५७/२३३/११ २०. अज्जवि तिरयणवंता अप्पा झाउण जंति सुरलोए।
तत्थ चुया मणुयत्ते उप्पज्जिय लहहि णिव्वाणं ॥ तत्त्वसार, गा० १५ २१. भरहे दुस्समकाले धम्मज्झाणं हवेइ साहुस्स।
तं अप्पसहावद्विदे ण हु मण्णाइ सो वि अण्णाणी ॥ मोक्षपाहुड़, गा० ७६ २२. तत्त्वदेशना, पृ० ३५ २३. वही, पृ० ३४ २४. सर्वार्थसिद्धि, ९/३६/४५०/५ २५. राजवार्तिक, ९/३७/४५३/६ स० सि० तथा ९/३७/२/६३३/३ श०
वा० २६. धवला, १३/५,४,२६/७४/१० २७. तत्त्वदेशना, पृ० ३० २८. राजवार्तिक, ९/३६/१३/६३२/१७

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