Book Title: Sramana 2011 04
Author(s): Sundarshanlal Jain, Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 32
________________ जैन ज्योतिष में वार (दिन) प्रवृत्ति का वैशिष्टय : २१ से पूर्व तथा तुलादि छः राशियों में सूर्य के रहने पर अन्तरार्ध तुल्य सूर्योदय के बाद वारप्रवृत्ति होती है। उदाहरण- संवत् २०६७ मार्गशुल्क ४ गुरुवार दिनांक ९-१२-२०१० को सूर्य ७.२२.२६.०१ तथा वाराणसी में सूर्योदय काल ६.३६ तथा दिनमान २६.११ था। उक्त नियमानुसार ३० घटी और दिनमान के अन्तर (३०-२६.११) = ३.४९ का आधा १.५४.३० घट्यादि वार प्रवृत्ति का नियामक हुआ। सूर्य वृश्चिक राशि में है। अत: तुलादि छः राशियों में सूर्य के रहने के कारण अन्तरार्ध तुल्य घट्यादि सूर्योदय से पूर्व वारप्रवृत्ति होगी। यथा सूर्योदय काल ०६.३६-१.५४.३६=४.४१.३० अर्थात् दिनांक ९-१२-२०१० को रात्रि में ४.४१.३० से वार (गुरुवार) की प्रवृत्ति होगी । इसी प्रकार प्रतिदिन वारप्रवृत्ति का साधन करना चाहिये । यह सिद्धान्त है अथवा किसी परम्परा से प्राप्त है निश्चयात्मक कहना कठिन होगा। परन्तु इतना निर्विवाद है कि यह वारप्रवृत्ति का एक स्वतंत्र सिद्धान्त है। संक्रान्तियों के आधार पर भिन्न-भिन्न कालों में वार आरम्भ स्वीकार करने के मूल में जैन आचार्यों की क्या दृष्टि रही है, यह ज्ञात नहीं हो सका है, किन्तु सम्भावना यही है कि संक्रान्तियों के अनुसार पृथक्-पृथक् दिनमान होने के कारण उक्त वारप्रवृत्ति की कल्पना की गयी होगी । दिनमान के लिये कहा गया है कि मकर से मिथुन तक छः राशियों में क्रमशः दिनमान की वृद्धि होती है। यथा - मकरसंक्रान्ति के दिन २८,१४, मेष के दिन ३० घटी, वृष के दिन ३१.४१. तथा मिथुन संक्रान्ति के दिन ३३.१२ घट्यादि दिनमान होता है। इसी प्रकार कर्क संक्रान्ति से धनु संक्रान्ति पर्यन्त प्रतिदिन दिनमान का ह्रास होता है। कर्क संक्रान्ति के दिन ३३ घटी फल दिनमान होता है पश्चात् सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक और धनु संक्रान्तियों के दिन क्रमशः ३३.१२, ३१.४६, ३०.००, २८.१४, २६.४८ दिनमान होते हैं। ये मान संक्रान्ति दिन के कहे गये हैं । प्रतिदिन की ह्रास - वृद्धि ज्ञात करने के लिये क्रम प्राप्त दो संक्रान्तियों के अन्तर को ३० से विभक्त करने पर एक दिन सम्बन्धी दिनमान का अन्तर प्राप्त होता है । यथा - कुम्भ के दिनमान २६.४८ में मकर के दिनमा २६.१२ को घटाने से शेष ००.३६ मे ३० का भाग देने से लब्धि १.१२ फल, विफल प्रतिदिन दिनमान की वृद्धि होती है। इसी क्रम से ह्रास का भी आनयन होता है । दिनमान के दैनिक अन्तर को निम्न श्लोक में दर्शाया गया है

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