________________
८२
होता है। अत: साहित्य में केवल सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, मूल्यों का ही वर्णन प्राप्त नहीं होता बल्कि उसके कुछ अपने स्वत: के भी मूल्य होते हैं जो कि रस, छन्द, अलंकार तथा उसके सौन्दर्यों से परिपूर्ण होते हैं। उन्हें ही हम किसी साहित्य का साहित्यिक या काव्यात्मक मूल्य कह सकते हैं।
प्राकृत साहित्य में काव्य का एक विशिष्ट स्थान है। जैन विद्वानों ने प्राकृत काव्यों में प्रायः धार्मिक उपदेशों, आख्यानों और चरितों का ही समावेश किया है, जब कि अजैन विद्वानों के काव्यों में प्रेम और श्रृंगार को प्रमुख स्थान मिला है। प्राकृत साहित्य में अध्यात्मवादी चिन्तनधारा के स्थान पर इहलौकिक यथार्थवादी चिन्तनधारा की मुख्यता है, इसलिए यह साहित्य काफी लोकप्रिय रहा है। इसलिए हमने आठवीं शताब्दी के काव्य वज्जालग्गं को अपने आलेख का आधार बनाया है।
प्राकृत काव्य के कवि संस्कृत एवं प्राकृत दोनों ही भाषाओं पर समान अधिकार रखते थे, इसके बावजूद भी उन्होंने जनजीवन से जुड़ी हुई भाषा में ही अपने लेखन का कार्य किया है। जयवल्लभ द्वारा संगृहीत वज्जालग्गं प्राकृत मुक्तकों का दूसरा प्रसिद्ध कोष है। इसकी रचना गाथासप्तशती के ही आधार पर हुई है। सप्तशती की लगभग सौ गाथाएं भी इसमें ले गई हैं, तथा उसकी साठ व्रज्याओं में से पच्चीस वज्जालग्गं से मेल खाती हैं। गाथासप्तशती के समान यह भी अनेक कवियों की रचनाओं का संग्रह है। जिन कवियों की रचनाएं इसमें संगृहित हैं वे सभी समसामयिक न होकर विभिन्न समयों में प्रादुर्भूत हुए थे। इससे यह सिद्ध है कि गाथासप्तशती की ही बहुत सी गाथाएं, जिनकी रचना वज्जालग्गं से शताब्दियों पहले हुई थी, इसमें मिलती हैं। यह भी अनेकानेक विषयों पर आधारित मुक्तकों का कोष है। श्रृंगारिक पद्यों का बाहुल्य इसमें भी है। हां जीवन के अन्य पक्षों का भी अपेक्षाकृत अधिक चित्रण हुआ है। इस प्रकार तुलना करने पर दोनों के रूप विधान में बहुत अधिक साम्य मिलता है। वज्जालग्गं में क्रमव्यवस्था को ही महत्त्व दिया गया है, यह उसके नाम से ही स्पष्ट है। अर्थात् गाथासप्तशती का नामकरण पद्य संख्या के आधार पर हुआ तथा वज्जालग्गं में क्रम भिन्न प्रकार से अंकित हैं। जैसे विज्जालग्गं, बज्जालग्गं, पद्यालयं और पज्झाल। इसकी संस्कृतछाया में प्रज्ञालय और विद्यालय शीर्षक भी मिलते हैं।
वज्जालग्गं का अर्थ - वज्जालग्गं की व्युत्पति करते हुए पिशेल ने अपने प्राकृत व्याकरण में कहा है कि यह शब्द वज्जा, व्रज्या और लग्ग (देशीनाममाला ७/७, लग्गं = चिन्हम्) = लग्न से बना है। स्वयं ग्रन्थकार के शब्दों में वज्जालग्ग विभिन्न पद्यों के समूहों का ऐसा संग्रह है, जिसके प्रत्येक समूह का एक-एक पृथक् विषय (शीर्षक) होता है, वज्जा का अर्थ स्वयं कवि ने भी किया है -