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अलंकारों के साथ-साथ वसन्ततिलकादि सुन्दर लय-तालयुक्त छन्दों का जामा भी पहने रहती है। छन्दों द्वारा भावसंप्रेषण में सरलता आदि का समावेश हो जाता है। कठिन भावों को छन्दों के माध्यम से सहज संवेद्य रूप में अभिव्यक्त कर सकते हैं।
छन्द कवि हृदय से नि:सत एकत्रावस्थित मनोवृत्तियों का सन्दर प्रवाह है, जो एक नियत और निश्चित दिशा की ओर जाता है। कठिन से कठिन विषयों को वे छन्दों के माध्यम से सहज एवं ग्राह्य बना लेते हैं।
प्राकृत काव्यों का लोकप्रिय छन्द गाहा है। इसलिए वज्जालग्गं के कवि ने पूरी एक पद्धति में ही गाहा छन्दों के महिमा का गुणगान किया है। इसमें प्राप्त गाहा छन्द का रस, महिलाओं के विभ्रम और कवियों के उल्लास किसका हृदय नहीं हर लेते - कस्स ण हरंति हिययं (व. ३/५)। गाथा छन्दों के न जानने पर भी कवि ने कटाक्ष किया कि जो लोककथाओं के गीतों के प्रौढ़ महिलाओं और तंत्रीनादों के रस को नहीं जानते, उनके लिए अज्ञान ही सबसे बड़ा दण्ड है। (व. ३/९)। एक गाथा कवि ने स्वयं (गाहा) को ही चेतावनी देते हुए कहा है कि अरसिक गवार लोगों से तुम दूर-दूर ही रहना, जो तुम्हें भली-भांति गा नहीं सकते नहीं तो वे तुम्हें अपने दांतों से चबा-चबाकर तुम्हें पीड़ा पहुंचाते हुए उसी तरह तोड़कर लघु बना देंगे (तुम्हारी गुरुता नष्ट कर देंगे), जैसे गांव के लोग ईख के डण्डे को कठोर दांतों से काट-काटकर छोटा कर देते हैं। गाथा गायन एक विशिष्ट कला है। (व. ३/८)
वज्जाओं में निर्दिष्ट विषय ही गाथाओं के प्रतिपाद्य हैं। वज्जाओं में भी सर्वत्र विषय-भेद नहीं है। बहुत सी वज्जायें बिल्कुल समान भाव भूमि का ही स्पर्श करती हैं। विरह, प्रोषित, प्रियानुराग, हदयसंवरण, बाला संवरण और ओलग्गाविया की भावभूमि एक है। उनमें प्राय: विरह का वर्णन है, हंस और चन्दन में केवल प्रतीकभेद हैं, विषय-भेद नहीं। अप्रस्तुतप्रशंसा के स्थलों पर प्राय: भिन्न-भिन्न वज्जाओं में एक ही व्यंग्य की पृथक् प्रतीकों के माध्यम से प्रतीति कराई गई है। ऐसे स्थलों पर बाह्य-भेद होने पर भी आन्तरिक भेद नगण्य हैं। विभिन्न वज्जाओं में वैसे भी बिल्कुल समान पदावली प्राय: दृष्टिगत होती है इस दोष के मार्जन के लिये यही कहा जा सकता है कि संग्रहकार ने समान भाव, समान रचना-पद्धति और समान शब्द-योजना से सम्बन्धित गाथाओं को तुलनात्मक दृष्टि से एक साथ संगृहित कर दिया होगा परन्तु यह सब होने पर भी वज्जालग्गं सरसता और मौलिकता की दृष्टि से एक अनुपम काव्य है। उसमें भाव, कल्पना और शिल्प-तीनों का अद्भुत साहचर्य है। रसों का तारम्य जहाँ उसे भाव पक्ष के उच्च शिखर पर प्रतिष्ठित करता है, वहीं शैलीगत वैदग्ध्य और भणिति भंगिमा के कारण उसका कलापक्ष भी कमनीय बन गया है। इसी कारण से वज्जालग्गं की गाथाओं में जहां प्राचीन काव्य रूढ़ियों का अनुवर्तन है वहां भी एक नवीनता दिखाई देती है। करुणा, मैत्री, परोपकार, दान, प्रणय, नीति, सदाचार,