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जैसलमेर - श्री बेगड़गच्छ उपासरा प्रशस्ति पार्श्वनारय मा सैव विविसावा 114सवारमतनदाश्रीजेएतामरुनगरेगाउलश्रीक्षा ल्यापजीविजयराज्यश्रीस्वरतापगडशनलपत्रागिनेश्वरमति विजयराज्यानानगावमकलभरावयामवावगडाजवला
सानपत्रमारवदनाजमाएदनानावणबजलमा विकमा रमसा नाम सामना जिनमवामपतीदा सजाया जाताणामण्यापसी मजदयातनामा वाकरसीमैटौला रमल्लारपसावकाणी उदय मा राजा मामलगमनसेनपान सहित ओरिसावकारिता दिजिबावामधयों)
AAधारणेवाकेन ना पंचा
SHRI BEGARH GACHHA UPASARA PRASHASTI - JAISALMER
(१) ॥ श्रीपार्श्वनाथाय नमः ।। संवत् १६ चैत्रादि ७३ वर्षे जेठ सुदि (२) १५ सोमवारे मूलनक्षत्रे । श्रीजेसलमेरुनगरे राउल श्रीक - (३) ल्याणजी विजयराज्ये । श्रीखरतरवेगड़गच्छे । भ० श्रीजिनेश्वरसूरि (४) विजयराज्ये । छाजहड़गोत्रे । मं० कुलधरान्वये । मंत्री वेगड़ । पुत्र मं० (५) सूरा । तत्पुत्र मं० देवदत्त । पुत्र मंत्री गुणदत्त । तत्पुत्र मं० सुरजन । मं० (६) वकमा । धरमसी । रत्ना । लषमसी । मंत्री सुरजन पुत्र । मं० जीआदे (७) सू । जीया पुत्र मंत्री पंचाइण । पुत्र मं० चांपसी । मं० उदयसिंह मं० (८) वांकुरसी । मं० टोडरमल्ल । चांपसी पुत्र देवकर्ण । उदयसिंह पुत्र (९) महिराज । प्र ..राझा मंत्री टोडरमल्लेण पुत्र सोनपाल सहिते (१०) न उपासरा द्वारं सुघट कारितं ।। चिरं जयतु । श्रीसंघस्य ।। (११) ।। सूत्रधार पांचाकेन कृतं ।। अंबाणी ।।
जैसलमेर के श्मशान से प्राप्त वि०सं० १६६३ के एक शिलालेख में उक्त जिनेश्वरसूरि द्वारा अपने गुरु जिनगुणप्रभसूरि के स्तूप पर चरणपादुका की प्रतिष्ठा का उल्लेख है२९ए। जिनेश्वरसूरि के उल्लेख वाला तीसरा शिलालेख भी श्मशान से ही प्राप्त हुआ है, जो वि०सं० १६८५ का है२९बी। चूँकि यह अभिलेख खंडित हो चुका है, अत: इससे विशेष बातें स्पष्ट नहीं हो पाती।