Book Title: Sramana 2003 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 172
________________ का परिचय दिया गया है। १०वें से १३वें अध्याय के अर्न्तगत अर्बद मण्डल की जैन धातु प्रतिमायें, क्षेत्र का सांस्कृतिक वैभव तथा स्थानीय बोलियों का परिचय है। अगले अध्यायों में प्राचीन चन्द्रावती एवं क्षेत्र के ऐतिहासिक दुर्गों का संक्षिप्त परिचय है। इसके पश्चात् सिरोही के शासक राव सुरताण, प्रसिद्ध राजस्थानी कवि ओपाजी आढा, महान इतिहासकार एवं भारतीय पुरालिपिविज्ञान के अध्ययन आदिपुरुष डॉ० गौरीशंकर हीराचंद ओझा तथा सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी भीमाशंकर शर्मा का विस्तृत परिचय दिया गया है। आगे के अध्यायों में यहां के ऐतिहासिक शिलालेखों, प्रमुख रचनाकारों, ऐतिहासिक व्यक्तियों, स्थापत्य एवं मूर्तिकला, मुद्रा माप, चित्रकला, वेशआभूषण, लोक मान्यतायें एवं नृत्य-गीत, यहां अवस्थित ग्रन्थभंडार एवं ब्रिटिशकाल में हुए जन आन्दोलन आदि का सुन्दर परिचय दिया गया है। वस्तुत: विद्वान् लेखक ने अपनी इस पुस्तक में गागर में सागर भरने का जो प्रयास किया है, वह स्तुत्य है। आशा है लेखक के इस प्रयास से प्रेरणा लेकर भविष्य में अन्य विद्वान् भी अलगअलग क्षेत्रों का इसी प्रकार सांस्कृतिक इतिहास संकलित करने का कार्य करेंगे। उत्तम कागज पर मुद्रित इस पुस्तक की साज-सज्जा अत्यन्त आकर्षक और मुद्रण अत्यन्त स्पष्ट है। पुस्तक में कई रंगीन चित्र भी दिये गये हैं जो पाठकों को क्षेत्र दर्शन के लिये प्रेरित करते हैं। यह पुस्तक न केवल शोधार्थियों बल्कि जनसामान्य के लिये भी पठनीय और सभी पुस्तकालयों के लिये अनिवार्य रूप से संग्रहणीय है। ऐसे सुन्दर ग्रन्थ के प्रणयन के लिये लेखक और उसे सुन्दर रूप में मुद्रित करा कर अल्प मूल्य में उपलब्ध कराने हेतु प्रकाशक, दोनों ही बधाई के पात्र हैं। शिवप्रसाद हरिवंश कथा : लेखक - पंडित रतनचन्द जी भारिल्ल; प्रकाशक - पंडित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, ए-४, बापूनगर, जयपुर ३०२०१५; प्रथम संस्करण - २००३ ई०; आकार - रायल अठपेजी; पृष्ठ ६+२९९; पक्की जिल्द बाइंडिंग; मूल्य - ३०/- रुपये मात्र। हरिवंश कथा, आचार्य जिनसेनकृत हरिवंशपुराण पर आधारित है। हरिवंश कथा को लेखक ने कथनाक शैली में लिखा है। मूलग्रन्थ में जहाँ आचार्य जिनसेन ने ६६ सर्गों में भगवान आदिनाथ से लेकर चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर तक के जीवन चरित्र पर विशेष उल्लेख किया है। वहीं पर पंडित श्री रतनचन्द भारिल्ल ने मात्र २९ सर्गों के माध्यम से ही 'हरिवंश' का उद्भव और विकास दर्शाया है अर्थात् भगवान् शीतलनाथ से भगवान् नेमिनाथ का समय और उस काल के प्रमुख पात्रों को सजीव बनाने का प्रयास किया है। इस पुस्तक में लेखक द्वारा कथा के माध्यम से जैन-धर्म के प्रचार-प्रसार करने का सफल प्रयास है। हरिवंश कथा वास्तव में श्रवणीय है। इसमें पर्याप्त रोचकता है। एक प्रकार से हम इसको अध्यात्म कथा भी कह सकते हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 170 171 172 173 174 175 176