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उदारता, उत्साह आदि मानवीय गुणों की सत्प्रेरणा देने वाला अपने आप में एक अनुपम काव्य का महत्त्व प्रदर्शित करता है। यह काव्य समाज का यथार्थ एवं उभयपक्षी चित्र प्रस्तुत करने के कारण कोरे आदर्शवादी काव्यों के समान एकांगी नहीं है। समाज में शिव और अशिव, पीयूष और कालकूट, राम और रावण पर इस काव्य में संक्षिप्त विवेचन किया गया है। अत: यह काव्य सच्चे अर्थों में एक साहित्यिक कृति है।
इस ग्रंथ के प्रारम्भिक दो वज्जाओं में काव्य, काव्य श्रोता और काव्य समीक्षकों के सम्बन्ध में अनेकों मान्यताओं का निरूपण किया गया है। प्रारम्भ में श्रुतदेवी को प्रणाम कर सुभाषित संग्रह के प्रयोजन के साथ प्राकृतकाव्य का माधुर्य और श्रृंगारपेशलत्व प्रतिपादित किया गया है। इसके अनन्तर वज्जालग्गं का अर्थ और उसके पारायण से मिलने वाले फल का संक्षिप्त वर्णन है। प्रारंभ की दो वज्जाओं (गाहावज्जा और कव्ववज्जा) में काव्य से सम्बन्धित कुछ मान्यताओं के संकेत हैं।
कवि कहता है कि काव्य रचना कष्टसाध्य होती है, उसका पाठ करना भी सरल कार्य नहीं; परन्तु उसके मर्मज्ञ श्रोता सबसे दुर्लभ हैं। जब सहृदय श्रोता उपलब्ध हो जाते हैं, तब किसी भी भाषा का काव्य अपूर्व रस देने लगता है (६, ७) क्लिष्टत्व काव्य का प्रमुख दोष है, उसके रहने पर अलंकार, लक्षण और गेयत्व - सभी गणों से मंडित गाथा भी चित्त में खेद उत्पन्न करती है (९, १०) गाथाओं का मर्म (ध्वनितत्व) सहृदय संवेद्य है (११)। वही रचना कामिनी के समान आनन्द प्रदान करती है, जो सुन्दर छन्दों एवं सुललित शब्द योजना के साथ-साथ अलंकार और रस से युक्त हो (१२)। सत्काव्य दोषहीन, ललितपद विन्यासयुक्त, स्फुट (प्रसाद गुणयुक्त) और मधुर होता है (२४)। ।
प्राकृत काव्यों के सम्बन्ध में बताया गया है कि वे मधुर वर्गों और छन्दों से विभूषित, श्रृंगार बहुल तथा देशी शब्दों से युक्त होते हैं। स्फुटता (प्रसादत्व), विकटता गाम्भीर्य और प्रावृतार्थता (ध्वनिगर्भितता) उनके प्रमुख गुण हैं (१०) ऐसे श्रृंगार रस से लबालब भरे, युवतीजन-वल्लभ और मधुराक्षर प्राकृत काव्यों के रहते भला कोई संस्कृत कैसे पढ़ सकता है? अन्त में अपार निष्ठा के उद्गार प्रकट करते हुए प्राकृत काव्य, प्राकृत-कवि और प्राकृत-काव्य-मर्मज्ञ को प्रणाम किया गया है।
ध्वनि, अलंकार, गेयत्व और ललित पदविन्यास की सुषमा से मंडित इसकी प्रसन्न गम्भीर शैली प्रत्येक हृदय को मुग्ध कर देती है। इस काव्य में रसों का भी सजीव व मार्मिक चित्रण उपस्थित किया गया है। वीर रस के उदाहरण के लिए कवि ने रणभूमि का चित्रण किया है जहां पड़े सैनिकों के शव को गिद्ध ले जा रहे हैं, परन्तु वह उस पीड़ा को असह्य होने पर भी इसलिए सह रहा है कि पास में पड़े हुए स्वामी की मूर्छा पंखों की हवा से टूट न जाय। इसी प्रकार से हास्य रस का भी सुन्दर चित्रण