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पत्नी - हेमचन्द्र ने पत्नी रूप में नारी का उल्लेख विस्तार से किया है। उन्होंने पत्नी के लिए नारी, गृहिणी, भार्या, भामिनी, कामिनी, रमणी, सहधर्मिणी आदि१४ शब्दों का प्रयोग किया है। ये कुल के लिए वरदानस्वरूप थीं क्योंकि अपने कर्तव्यपालन एवं शुद्धाचरण से पितृकुल एवं पतिकुल दोनों वंशों को उज्जवल करती थीं।१५ हेमचन्द्र ने स्वच्छन्द न होना कुलीन स्त्रियों का स्वाभाविक धर्म बताया है।१६ हेमचन्द्र ने सौन्दर्य की प्रतिरूप नारी को उसके पतिव्रत धर्म के कारण अत्यन्त श्रेष्ठ माना है। तत्कालीन समाज में स्त्री का सतीत्व ही सर्वस्व माना जाता था।१७ उसके गृहस्थ जीवन का सुख उसके पतिव्रत धर्म में निहित था।१८ पतिव्रता स्त्री अपने सतीत्व के प्रभाव से असंभव को संभव बना देती थी। सतीत्व के आचरण से ही दमयन्ती ने राक्षसी से अपनी रक्षा की थी९ और जल प्राप्त कर अपनी प्यास बुझायी थी।२० पतिव्रत धर्म के आचरण से ही सीता रावण तथा मन्दोदरी द्वारा समझाये जाने पर भी विचलित नहीं हुई थी।२१ नेमि की भावी पत्नी राजीमती ने अपने देवर रथनेमि से सतीत्व की रक्षा हेतु श्राप का आश्रय लिया।२२ द्रौपदी ने भी अपने सतीत्व का प्रभाव दिखाया था।२३ इससे ज्ञात होता है कि तत्कालीन समाज में स्त्री के सतीत्व का महत्व तथा प्रभाव स्वीकार किया जाता था।
हेमचन्द्र ने दाम्पत्य जीवन का सन्दर चित्रण किया है। यहाँ पति-पत्नी का पारस्परिक व्यवहार अत्यन्त सौहार्दपूर्ण वर्णित है।२४ नल - दमयन्ती के माध्यम से पति-पत्नी का जो पारस्परिक अनुराग एवं प्रेम वर्णित है, वह किसी भी दम्पत्ति के स्वाभाविक मनोदशा का चित्रण हो सकता है।२५ पत्नी पति से केवल प्रेम ही नहीं करती अपितु उसकी आज्ञा का पालन भी करती है। इस दृष्टि से वह उसकी दासी ज्ञात होती है। आज्ञा-पालन के कर्तव्य का पालन करने के कारण हेमचन्द्र उसे कुलवधू का आभरण और मण्डन की संज्ञा देते हैं।२६ उनका कहना है कि स्त्री को सदैव अपने स्वामी के कष्टों एवं दुखों की चिन्ता करनी चाहिए।२७
हेमचन्द्र ने पति-पत्नी के पारस्परिक साहचर्य का उल्लेख किया है और यह बताया है कि पत्नी पति के मार्ग का कण्टक नहीं अपितु उसके उच्चादर्श की प्राप्ति में सहायक होती है। सीता राम के वनगमन के समय उसकी सहायिका के रूप में कार्य करने के लिए माता अपराजिता से आज्ञा मांगती है। अपराजिता भी सीता को यथार्थ उपदेश देकर उसे अपने मार्ग पर अग्रसारित होने की प्रेरणा देती है।२८ इससे पता चलता है कि पति का अनुगमन करने वाली स्त्री को कोई भी रोक नहीं सकता था। इस प्रकार ज्ञात होता है कि इस समय स्त्री पत्नी रूप में एक आदर्श गृहणी मानी जाती थी जो भारतीय परंपरा के अनुकूल था।
माता - हेमचन्द्र ने प्रेम की नैसर्गिक परिणति मातृत्व में की है। उस समय नारी माता के रूप में पूज्यनीय एवं सम्माननीय थी। आलोच्य ग्रन्थ में भी सन्तानोत्पत्ति