Book Title: Sramana 2003 07
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 106
________________ १०० ____ धर्मचक्र प्रवर्तन मुद्रा - पद्मासन में बैठे हुए बुद्ध व्याख्यान देते हुए प्रदर्शित हैं। इसमें बुद्ध की उंगलियों को अविद्या के मण्डल को विच्छिन्न करते हुए दिखाया गया है। इसे व्याख्यान मुद्रा या ग्रन्थि विमोचन मुद्रा भी कहा गया है। सारनाथ की मूर्ति इसी मुद्रा में है। अभय मुद्रा - इसमें बुद्ध प्राणियों को निर्भय रहने का संदेश दे रहे हैं (भयप्पत्ता च निब्भया)। इसमें दाहिना हाथ कन्धे तक उठा है और कर्तल सामने है। प्रो० सी०एस० उपासक का मत है कि विश्व की सबसे ऊँची खड़ी हुई अभय मुद्रा में बामियान की ५५ मीटर (१७३ फीट) ऊँची बुद्ध की प्रतिमा थी जो अब भग्न अवस्था में है। वरद मुद्रा - इस मुद्रा में मूर्ति का दाहिना हाथ आशीर्वाद देने की मुद्रा में नीचे, परन्तु सामने की ओर करतल किये हुए होता है। उपर्युक्त मुद्राओं के अलावा दो अन्य मुद्राओं में भी बुद्ध की मूर्तियाँ प्राप्त होती हैं। चारिका मुद्रा - इसमें तथागत की चलती फिरती मुद्रा में मूर्तियाँ होती हैं। ऐसी मूर्तियाँ अफगानिस्तान में अधिक प्राप्त हुई हैं। ___ महापरिनिर्वाण मुद्रा - इस मुद्रा में भगवान् बुद्ध की अन्तिम समय की मूर्ति प्राप्त होती है। इसमें भगवान् बुद्ध दाहिने करवट, दाहिने हाथ को सिर के नीचे मोड़कर रखे हुये लेटे हैं और दाहिने पैर पर बाँया पैर सीधा रखा हुआ है। कुशीनगर के महानिर्वाण विहार (मन्दिर) में इसी मुद्रा की मूर्ति स्थापित है। कालान्तर में बौद्ध कला में बद्ध मूर्तियों के अलावा बोधिसत्वों यथा पद्मपाणि, अवलोकितेश्वर, मैत्रेय तथा तारा आदि देवियों की मूर्तियाँ बनायी गईं जो पुरातात्विक उत्खनन में प्राप्त हैं। २. चित्रकला • चित्रकला के क्षेत्र में बुद्ध और उनके धर्म का बहुत योगदान है। बौद्ध कला केन्द्र अजन्ता अपनी चित्रकला के लिए ही विश्व के आश्चर्यों में एक माना जाता है। इसके अलावा भारत के बाहर कूचा और तुर्कान के आगे चीन की सीमा पर रेशम मार्ग पर स्थित तुनह्वांग प्रदेश (नगर) से चौथी और पाँचवी ई० के कुण्डलीकृत चित्र प्राप्त हुए हैं जो अद्वितीय हैं। तुनह्वांग गुफाओं के भित्तचित्र भी अजन्ता की गुफाओं की तरह सुसज्जित हैं, लेकिन वे अधिक सुरक्षित नहीं हैं। चित्रकला के सम्बन्ध में प्रारम्भ में भगवान् बुद्ध ने केवल पुष्प मालाओं के चित्रण (मालाकम्म), लताओं के चित्रण (लताकम्म), मकरदन्त की भाँति त्रिकोण आकृतियाँ (मकरदन्तक), चौखटों की आकृतियाँ (पंचपटिक) के चित्र बनाने की अनुमति भिक्षुओं को दी थी। ये चित्र कपड़ों, पत्थरों और दीवारों पर बनाये जाते थे, जिन्हें पटचित्र, फलकचित्र और भित्तिचित्र कहते थे।

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