________________
के बाद ही नारी माता के रूप में प्रतिष्ठित मानी गयी है।२९ सन्तानरहित स्त्री को अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता था। अनपत्य होने पर नारी अपना सम्पूर्ण जीवन निरर्थक मानती थी।३० अत: अनेक उपायों द्वारा सन्तानोत्पत्ति की कामना की जाती थी।३१ इस प्रकार माता बनने पर उसकी गरिमा समाज में अत्यधिक उन्नत हो जाती थी। हेमचन्द्र ने अपने ग्रन्थ में मातृत्व के जिस वात्सल्यभाव का वर्णन किया है वह अन्यत्र कहीं नहीं मिलता।३२ पुत्र के प्रति माता का वात्सल्य वर्णन महावीर, प्रद्युम्न, भामण्डल आदि के वर्णन प्रसंग में अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया है। प्रद्युम्न तथा भामण्डल के अपहरण की सूचना पाकर इनकी माताएं शोकाकुल मुद्रा में मूच्छित हो जाती हैं।३३ सागर के ६० हजार पुत्रों के मर जाने पर माताओं का दुःख करुणा की सीमा को लांघ जाता है।३४ इस प्रकार नारी माता के रूप में करुणा तथा वात्सल्य की साक्षात प्रतिरूप मानी गयी है। हेमचन्द्र का मानना है कि पति एवं पुत्र से युक्त नारी का होना ही उसका वास्तविक जीवन है। इसीलिए इनसे हीन नारी को वे “निर्वीस' शब्द से अभिहित करते हैं।३५ यह उसके दुर्भाग्य का द्योतक है। इस प्रकार हम देखते हैं कि हेमचन्द्र अपने ग्रन्थ में माता के स्वरूप को विशेष महत्व देते हैं।
गणिका - स्त्री के इन तीनों रूपों के अतिरिक्त हेमचन्द्र ने नारी के गणिका स्वरूप का भी विस्तृत उल्लेख किया है। वास्तव में तत्कालीन सामाजिक परिवेश में नारी का यह स्वरूप गृहस्थ जीवन से मुक्त स्वतन्त्र अस्तित्व का द्योतक है। भारतीय परंपरा में नारी बाल्यकाल में पिता, यौवनकाल में पति तथा वृद्धावस्था में पुत्र द्वारा पोषित एवं रक्षित मानी गयी है.६ किन्तु इससे भिन्न अवस्था में वह अन्य रूपों में भी दिखायी देती है। एक अवस्था उनकी सार्वजनिक उपभोग की है जिन्हें गणिका, वैशिकी, स्वैरिणी, पतिता, वेश्या आदि नामों से अभिहित किया जाता है। हेमचन्द्र ने भी गणिकाओं का उल्लेख किया है जो सार्वजनिक उपभोग की वस्तु थीं जिन्हें वारस्त्री भी कहा जाता था लेकिन ऐसी स्त्रियों को समाज घृणा की दृष्टि से देखता था।३७ गणिकाओं को राजदरबार में उचित तथा महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था।३८ ऐसी गणिकाओं में मदनमंजरी, अनन्तमालिका, गुणमंजरी, कामलता आदि प्रसिद्ध थीं।३९ गुणमंजरी, राजा पर्वतक के दरबार में राजगणिका पद पर प्रतिष्ठित थी। इसमें स्त्री के अनेक सुलभ गुण विद्यमान थे जिसके कारण राजा पर्वतक उसे प्राणों से अधिक प्रेम करते थे। कभी-कभी ये गणिकायें राजाओं में युद्ध का कारण बन जाती थीं। इसका निर्देश हेमचन्द्र ने विंध्यशक्ति के वर्णन प्रसंग में किया है।४१ दान आदि के प्रसंग में गणिकाओं को अलंकारादि दिये जाने के उल्लेख भी मिलते हैं। २ वैसे सामान्यत: इन्हें राजाओं द्वारा पारितोषिक आदि भी दिए जाते थे। इन गणिकाओं का कार्य राजा तथा दरबारियों का मनोविनोद करना था। इस प्रकार गणिकाएं विशेषत: राजदरबारियों से सम्बन्धित थीं।