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६ : श्रमण/जनवरी-जून २००२ संयुक्तांक सम्बन्ध में प्रायः एक प्रकार को गाईड बुक है। इस ग्रन्थ का विशिष्ट अध्ययन पार्श्वनाथ विद्यापीठ से १९९० में प्रकाशित हुआ है।
६. बानगी (नाहटाजी की बानगी)- यह राजस्थानी भाषा में रचित संस्मरणों. रेखाचित्रों एवं लघुकथाओं का सरलतम संकलन है जिसमें इन्होंने अपनी मातृभाषा को विविध विधाओं में कलात्मकता को उकेरा है। राजस्थानी-साहित्य के श्रेष्ठ साहित्य प्रकाशन भण्डार में यह एक महत्त्वपूर्ण अभिवृद्धि है।
यह संकलन वस्तुत: लोकजीवन एवं लोकसाहित्य से सशक्त, जीवन्त, सरस और सहज चित्रों की बानगी प्रस्तुत करती है और इस प्रकार मरुधरा की धरती के स्वर को अधिक प्राणवान् बनाती है।
प्रस्तुत कृति शान्तिलाल भारद्वाज द्वारा (राजस्थान-साहित्य अकादमी संगम) उदयपुर से १९६५ ई० में प्रकाशित करवायी गयी।
७. आनन्दघनचौबीसी- परमअवधूत योगिराज आनन्दघनजी रचित चौबीस तीर्थङ्करों के स्तवन एवं पदों का न केवल जैन अपितु भारतीय समाज में आज तक एक विशिष्ट स्थान रहा है। ये स्तवन मुमुक्षु एवं साधकों के हृदय को झंकृत करने वाले एवं आत्मानुभूति को और बढ़ाने वाले होने से मानस को भक्तिरस से आप्लावित कर देते हैं।
८. युगप्रधानश्रीजिनचन्द्रसरि– यह महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ श्री अभय जैन ग्रन्थमाला के सप्तम पुष्प के रूप में प्रस्फुटित हुआ है। इसका प्रकाशन वर्ष सं० १९९२ है। यह ग्रन्थ भँवरलालजी नाहटा ने अपने काका अगरचन्दजी नाहटा के साथ लिखा है। लेखकद्वय ने अपने सारगर्भित वक्तव्य में बहुमूल्य शोध-सामग्री प्रस्तुत की है। इसके अन्तर्गत उन्होंने अनेक महत्त्वपूर्ण प्रश्न उठाये हैं और उनका विद्वत्तापूर्ण समाधान-उत्तर भी दिया है। इसकी प्रस्तावना मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने लिखी है, जो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यह ग्रन्थ संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती, बंगला, अंग्रेजी. प्राचीन भाषाओं और सैकड़ों हस्तलिखित प्राचीन पाण्डुलिपियों, प्रशस्तियों, पट्टावलियों, रिपोर्टों आदि के गहन अध्ययन, चिन्तन और मनन के आधार पर अत्यन्त प्रामाणिकता के साथ लिखा गया है।
९. ऐतिहासिकजैनकाव्यसंग्रह- भंवरलालजी नाहटा एवं अगरचन्दजी नाहटा के सम्पादकत्व में सं० १९९४ में श्री अभय जैन ग्रन्थालय के अष्टम पुष्प के रूप में इस ग्रन्थरत्न का प्रगटन हुआ है। इस पुस्तक का समर्पण श्री दानमलजी नाहटा की स्वर्गस्थ आत्मा को उनके अनुज और उक्त ग्रन्थ के प्रकाशक श्री शंकरदानजी नाहटा ने किया है।
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