________________
U
47 8 4
( १८ ) सप्तभंगी के इस सांकेतिक प्रारूप के निर्माण में हमने चिह्नों का प्रयोग उनके सामने दर्शित अर्थों में किया है :चिह्न
अर्थ यदि-तो(हेतुफलाश्रित कथन) अपेक्षा (दृष्टिकोण) संयोजन (और) युगपत् (एकसाथ) अनन्तत्व व्याघातक उद्देश्य
विधेय भंगों के आगमिक रूप भंगों के सांकेतिक रूप ठोस उदाहरण स्यात् अस्ति अ', उवि है यदि द्रव्यकी अपेक्षासे विचार
करते हैं तो आल्मा नित्य है। स्यात् नास्ति अ' उवि नहीं है यदि पर्याय की अपेक्षा से
विचार करते हैं तो आत्मा
नित्य नहीं है।
(अउ वि है. यदि द्रव्य की अपेक्षा से स्यात् अस्ति नास्ति च )
अउ वि नहीं है विचार करते हैं तो आल्मा
नित्य है और यदि पर्याय की अपेक्षा से विचार करते
हैं तो आत्मा नित्य नहीं है। ((अ' अ१)य उ
यदि द्रव्य और पर्याय दोनों स्यात् अवक्तव्य र अवक्तव्य है
ही अपेक्षा से एक साथ विचार करते हैं तो आत्मा अवक्तव्य है। (क्योंकि दो भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं से दो अलग-अलग कथन हो सकते हैं किन्तु एक कथन नहीं हो सकता)।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org