Book Title: Sramana 1990 01
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 109
________________ ( १०९ ) 'क्रो एण्ड क्रो' ने बहिर्मुखी तथा अन्तर्मुखी के गुणों का बड़े ही अच्छे ढंग से तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत किया है।' उनका यह विवरण 'इंग्लिश एण्ड इंग्लिश' में वर्णित विवरण से मिलता-जुलता ही प्रतीत होता है। उदाहरणस्वरूप क्रो के अनुसार बहिर्मुखी धारा प्रवाह बोलने की क्षमता, चिन्ता से मुक्त तथ्यों पर भरोसा करने की शक्ति रखता है तो अन्तर्मुखी इसके विपरीत बोलने से अधिक लिखने में सफल, चिन्तित रहने, सरलता से विचलित हो जाने वाले गुणों से युक्त रहता है। (३) उभयमुखिता-समाज में ऐसे व्यक्ति होते हैं जिनमें बहिमुखता और अन्तर्मुखता के मिले-जुले लक्षण पाए जाते हैं। ऐसे लोग हो उभयमुखी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति कहे जाते हैं। अगर उभयमुखिता के बारे में विचार किया जाए तो निष्कर्ष के तौर पर यही कहा जा कता है कि उभयमुखिता वास्तव में व्यक्तित्व की ऐसी प्रवृत्ति है जो हिर्मुखिता एवं अन्तर्मुखिता में संतुलन बनाए रखने का प्रयास करती जैन परम्परा में व्यक्तित्व के बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमा* के रुप में जो वर्गीकरण किया गया है, वह मुख्यतः व्यक्ति के अध्यात्मिक और नैतिक चारित्र के विकास के आधार पर किया गया । इस दृष्टि से वह मनोविज्ञान के व्यक्तित्व बहिर्मुखी, अन्तर्मुखी र उभयमुखी वर्गीकरण से भिन्न ही है। मनोवैज्ञानिक वर्गीकरण जो उभयमुखी व्यक्तित्व का चित्रण है, वह जैनों के उपर्युक्त ध्यात्मिक वर्गीकरण में हमें उपलब्ध नहीं होता तथा इसकी ला परमात्मा से भी नहीं की जा सकती। जहाँ तक बर्हिमुखी व्यक्तित्व का अर्थ है वह सीमित अर्थ में रात्मा से साम्य रखता है, क्योंकि बहिरात्मा की मुख्य विशेषता १-एल. डी. क्रो एण्ड ए. सी. क्रो. एजुकेशनल साइकोलाजी, न्यू देहली, उद्धृत. व्यक्तित्वमनोविज्ञान, पृ० १७१ २-जैनागमों में आत्मा के तीन रूपों की चर्चा बहिरात्मा अंतरात्मा है और परमात्मा के रूप में मिलती है। परमात्मा के पुनः दो भेद (१) अरिहंत और (२) अशरीरी हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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