Book Title: Sramana 1990 01
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 116
________________ ( ११६ ) वस्तु की चाह या इच्छा करने लगते हैं और इसीलिये पुनः दुःखी हो जाते हैं। सभी प्राणियों के दुःख के कारण अलग-अलग हैं । कोई किसी कारण से दुःखी है तो कोई किसी अन्य कारण से । दुःखी सब हैं । क्या इस दुःख से मुक्ति सम्भव है ? इस पुस्तक में प्रबुद्ध विचारक श्री कन्हैयालालजी लोढ़ा ने विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से बड़े ही रोचक शैली में उक्त प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास किया है । पुस्तक में श्री लोढ़ा जी द्वारा उक्त विषय पर लिखे गये १४ लेखों का सङ्कलन है। इसमें दैनिक जीवनोपयोगी बातों को बड़े ही सुन्दर ढंग से समझाया गया है । इन बातों का हम आंशिक पालन भी करें तो हमारा जीवन एक आदर्श जीवन बन सकता है, इसमें कोई सन्देह नहीं । यह पुस्तक प्रत्येक व्यक्ति के लिये पठनीय और मननीय है । पुस्तक का मुद्रण अत्यन्त सुस्पष्ट और त्रुटिरहित है । x X आनन्दघनचौबीसी ( विवेचन ) श्री सहजानंदघनजी महाराज; सम्पादक : श्रीभंवरलाल नाहटा, पृ० ५८ + १७२; मूल्य : ३० रुपया प्रथम संस्करण -- १९८९ ; प्रकाशक - प्राकृतभारती, जयपुर एवं श्रीमद्राजचन्द्र आश्रम, हम्पी x अध्यात्मयोगी आनन्दघनजी महाराज भारतीय सन्त परम्परा के एक अत्यन्त उज्ज्वल नक्षत्र थे । आप सम्प्रदाय के बन्धन से मुक्त, उच्च कोटि के अध्यात्मतत्त्वज्ञ, निस्पृह साधक और अवधूत योगी के साथसाथ अद्वितीय विद्वान् भी थे । आपकी कृतियां यद्यपि संख्या की दृष्टि से अधिक तो नहीं हैं, किन्तु वे अतिगम्भीर एवं गूढ़ार्थ हैं जिनके मनन एवं चिन्तन से मानव आत्मविकास की ओर उन्मुख हो सकता है । आनन्दघनजी की रचनाओं में चौबीस तीर्थंकरों पर लिखी गयी चौबीसी अत्यन्त प्रसिद्ध है । इस पर यशोविजयजी, ज्ञानविमलसूरि जी, मुनिबुद्धिसागरजी, मोतीलाल गिरधरदास कापड़िया और सहजानन्दधनजी ने बालावबोध विवेचन आदि की रचना की है । Jain Education International आनन्दघनजी की चौबीसी एवं उस पर श्री सहजानन्दघन जी द्वारा लिखे गये विवेचन - भावार्थ को प्रसिद्ध विद्वान् श्री भंवरलाल For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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