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जी नाहटा के सम्पादकत्व में प्रकाशित कर प्राकृत भारती एवं श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम ने एक अभिनंदनीय कार्य किया है । ग्रन्थ के प्रारंभ में लगभग ५० पृष्ठों की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रस्तावना इसके महत्त्व को द्विगुणित कर देती है । इसकी साज-सज्जा अत्यन्त आकर्षक तथा मुद्रण त्रुटिरहित है। ऐसे सुन्दर प्रकाशन के लिये सम्पादक एवं प्रकाशक दोनों बधाई के पात्र हैं ।
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X नाकोड़ाश्री पार्श्वनाथतीर्थ - महोपाध्याय
X विनयसागर;
पृष्ठ १४ + २४०; मूल्य : ६० रुपया; प्रथम संस्करण - १९८९; प्रकाशक -- कुशल संस्थान, मोती डूंगरी रोड, ६२, गंगवाल पार्क, जयपुर
राजस्थान प्रान्त में भगवान् पार्श्वनाथ के अनेक तीर्थस्थान हैं, इनमें जीरावलापार्श्वनाथ, फलवधिका पार्श्वनाथ, करटक पार्श्वनाथ, पापरडापार्श्वनाथ, नाकोड़ापार्श्वनाथ, लोद्रवा पार्श्वनाथ, चंवलेश्वरपार्श्वनाथ आदि अत्यन्त प्रसिद्ध हैं । प्रस्तुत पुस्तक नाकोड़ापार्श्वनाथ तीर्थ के इतिहास पर प्रकाश डाला गया है । इसमें ६ अध्याय हैं । प्रथम अध्याय में तीर्थों का महत्त्व, द्वितीय अध्याय में पुरुषादानीय पार्श्वनाथ और तृतीय अध्याय में तीर्थ के नामकरण की चर्चा है । चतुर्थ अध्याय में यहां के जिनालयों का इतिहास तथा पांचवें अध्याय में यहाँ प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों का विवरण है । छठें अध्याय में वर्तमान समय में यहाँ हो रहे विकास कार्यों का विवरण दिया गया है । ग्रन्थ के अन्त में अत्यन्त उपयोगी दो परिशिष्टियाँ भी दी गयी हैं । पुस्तक में सात नयनाभिराम रंगीन एवं सादे चित्र भी दिये गये हैं, जो पाठकों को सहज हीं आकर्षित करते हैं । इन्हें देखने पर पाठक कुछ क्षण के लिये यह भूल जाता है कि वह इस तीर्थस्थान के चित्रों को देख रहा है बल्कि उसे यह अहसास होता है कि वह स्वयं तीर्थस्थान पर ही उपस्थित है ।
श्री विनयसागर जी से पूर्व मुनिश्री जयन्तविजयजी और मुनिश्री विशाल विजयजी ने भी आबू, कुंभारिया, राधनपुर आदि कई तीर्थों का इतिहास लिखा है । आज इस बात की महती आवश्यकता है कि सभी प्राचीन तीर्थक्षेत्रों का प्रामाणिक एवं सचित्र इतिहास लिखा जाये जो शोधार्थियों एवं श्रद्धालुओं दोनों के लिये समान
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