Book Title: Sramana 1990 01
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 118
________________ ( ११८ ) रूप से उपयोगी हो। आशा है कि समाज के अग्रगण्य श्रावक जिस प्रकार प्राचीन तीर्थों के संरक्षण पर ध्यान दे रहे हैं उसी प्रकार उनके इतिहास लेखन की भी उचित व्यवस्था करेंगे। जैन दर्शन के मूल तत्व-विजयमुनि शास्त्री, पृष्ठ : १२+१७६, मूल्य : १५ रुपया, प्रथम संस्करण-अक्टूबर १९८९, प्रकाशक-दिवाकर प्रकाशन, अवागढ़ हाउस, महात्मा गांधी मार्ग, आगरा २८२००२ः राष्ट्रसंत उपाध्याय अमरमुनि जी के सुशिष्य श्री विजय मुनि जी 'एक गम्भीर अध्येता एवं उत्कृष्ट वक्ता के रूप में विख्यात हैं । विवेच्य पुस्तक में मुनिश्री द्वारा पूना में दिये गये प्रवचनों का संकलन है। इसमें धर्म, अधर्म, काल, आकाश, पुदगल, जीव आदि का विवेचन किया गया है। पुस्तक के अन्त में एक महत्त्वपूर्ण परि 'शिष्ट भी दी गयी है, जिसके अन्तर्गत प्रमाण, लक्षण, नय, निक्षेप पुद्गल आदि पर प्रकाश डाला गया है। अध्येताओं को जैन दर्शन का 'प्रारम्भिक परिचय देने में यह पुस्तक निश्चित ही सफल होगी। स्मारिका-प्रतिष्ठा-दीक्षा-उद्यापन-गणिपद महोत्सन : १९८९; संपा. -गणेश ललवानी, पृ० ५८, प्रकाशक-श्री जिनदत्तसूरिमण्डल, सूरत प्रस्तुत स्मारिका में सूरत में नवनिर्मित मुनिसुव्रत जिनालय में प्रतिमाप्रतिष्ठा, कु. कान्ता बोथरा की दीक्षा एवं मुनिश्री महिमाप्रभसागर जी म० के गणिपद महोत्सव का बड़ा ही सुन्दर एवं ' सचित्र विवरण प्रस्तुत किया गया है। इसके साथ ही इसमें जैनधर्म, 'छ-री पालित संघ', 'व्यक्तित्व विकास', 'चित्तवृत्ति और अनुप्रेक्षा' आदि कई महत्त्वपूर्ण लेखों एवं कुछ कविताओं को स्थान दिया गया है । स्मारिका की साज-सज्जा अत्यंत आकर्षक तथा मुद्रण कलापूर्ण है। ऐसे सुन्दर प्रकाशन के लिए श्री जिनदत्तसूरिमंडल, सूरत बधाई के पात्र हैं। 'सिद्धगिरी का यात्री' : उपाध्याय केवलमुनिः; प्रकाशकदिवाकर, प्रकाशन एम. जी. रोड, आगरा २८२००२, पृ० ६४, मूल्य-आठ रुपया, प्रथम संस्करण, वि० सं० २०४६ : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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