Book Title: Sramana 1990 01
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 113
________________ साहित्य सत्कार अर्चनार्चन (महासती श्रीउमरावकुवरजी म. सा. 'अर्चना दीक्षा स्वर्ण जयंती अभिनंदन ग्रंथ) : प्रधानसंपादिका- आर्या सुप्रभाकुमारी; पृ० ११५५, प्रथमसंस्करण १९८८; प्रकाशकमुनिश्रीहजारीमल-स्मृति प्रकाशन, पीपलिया बाजार ब्यावर (राजस्थान) अध्यात्मयोगिनी, परमविदुषी, प्रखर व्याख्यात्री श्री अर्चनाजी म० की आर्हती दीक्षा के ५० वर्ष पूर्ण होने पर उन्हें यह 'अर्चना-दीक्षा स्वर्णजयन्तीवन्दन-अभिनन्दनग्रन्थ भेंट किया गया। इस महान् ग्रन्थ में विभिन्न मतों एवं विचारों वाले मनीषी विद्वानों के निबन्धों को संकलित किया गया है। ग्रंथ ५ खण्डों में विभक्त है। प्रथम खण्ड में आशीर्वचन, शुभकामना, संदेश, अभिनन्दन आदि को समाहित किया गया है, इसमें लगभग ५५-५६ काव्याञ्जलियाँ भी हैं । अभिनन्दनग्रंथ का द्वितीय खण्ड महासतीजी के व्यक्तित्व एवं कृतित्त्व से सम्बन्धित है। २३१ पृष्ठों के इस खण्ड में १०० से ज्यादा लोगों के संस्मरण आदि का संकलन है। तृतीय खण्ड में महासतीजी के कुछ प्रवचनों-'भावशुद्धि-विहीन शुभ-कर्म खोखले', 'सत्साहित्य का अनुशीलन', 'संत और पंथ', 'तूफानों आदि से टक्कर लेनेवाला आस्था का दीपक', 'सम्पूर्ण संस्कृतियों का सिरमौर भारतीय संस्कृति', 'दीर्घजीवन या दिव्यजीवन', 'दहेजरूपी विषधर को निर्विष बनाओ' और 'विचार एवं आचार' आदि ९ लेखों को स्थान दिया गया है। चतुर्थ खण्ड में जैन संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर जैन विद्या के लब्धप्रतिष्ठित विद्वानों के लेखों को स्थान दिया गया है, जिसमें उपाचार्य श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री द्वारा लिखित 'भगवान् महावीर की नीति', युवाचार्य डा० शिवमुनिजी म. द्वारा लिखित 'कर्मवाद का आधारभूत सिद्धान्त', डा० दरबारी लाल कोठिया का 'जैन अनुमान की उपलब्धियाँ', प्रो० संगमलाल पाण्डेय का 'जैन समाज दर्शन', डा० सागरमल जैन का 'धर्म और दर्शन के क्षेत्र में हरिभद्र की सहिष्णुता', डा० दामोदर शास्त्री का हरिभद्र के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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