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में अपने गुरु के रूप में इनका उल्लेख किया है। इस प्रशस्ति में प्राप्त गुर्वावली इस प्रकार है
शालिभद्रसूरि धर्मघोषसूरि यशोभद्रसूरि रविप्रभसूरि ( धर्मघोषसूरिस्तुति के कर्ता )
उदयप्रभसूरि ( व्याख्याकार ) ३-विचारसारविवरण'-९०० गाथाओं की इस रचना के कर्ता धर्मघोषगच्छीय प्रद्युम्नसूरि हैं। रचना के अन्त में उन्होंने अपनी गुरु परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है
धर्मघोषसूरि देवप्रभसूरि
प्रद्युम्नंसूरि ( रचनाकार ) ४-कल्पसूत्रटिप्पनक...यह धर्मघोषगच्छीय पृथ्वीचन्द्रसूरि की रचना है। रचना के अन्त में इन्होंने प्रशस्ति के अन्तर्गत अपनी गुर्वावली
एवं प्रवचनसारे तच्छिष्यल वश्चकार टिप्पनकम् । श्रीउदयप्रभसूरिविषमपर्दार्थाववोधाख्यम् ॥ ४ ।। शाह, अम्बालाल पी०-कैटलाग ऑफ संस्कृत एण्ड प्राकृत मैन्युस्क्रिप्ट्स
इन द कलेक्सन ऑफ मुनि पुण्यविजय, जिल्द १, क्रमांक ३३२४ १. जिनरत्नकोश, पृ० ३५३ २. चंद्रकुलांबरशशिनश्चारित्रश्रीसहस्रपत्रस्य ।
श्रीशीलभद्रसूरेगुणरत्नमहोदधि (धेः) शिष्यः ।। अभवद् वादिमदहरः षट्तीभोजबोधनदिनेशः ।
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