Book Title: Sramana 1990 01
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 47
________________ ( ४७ ) में अपने गुरु के रूप में इनका उल्लेख किया है। इस प्रशस्ति में प्राप्त गुर्वावली इस प्रकार है शालिभद्रसूरि धर्मघोषसूरि यशोभद्रसूरि रविप्रभसूरि ( धर्मघोषसूरिस्तुति के कर्ता ) उदयप्रभसूरि ( व्याख्याकार ) ३-विचारसारविवरण'-९०० गाथाओं की इस रचना के कर्ता धर्मघोषगच्छीय प्रद्युम्नसूरि हैं। रचना के अन्त में उन्होंने अपनी गुरु परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है धर्मघोषसूरि देवप्रभसूरि प्रद्युम्नंसूरि ( रचनाकार ) ४-कल्पसूत्रटिप्पनक...यह धर्मघोषगच्छीय पृथ्वीचन्द्रसूरि की रचना है। रचना के अन्त में इन्होंने प्रशस्ति के अन्तर्गत अपनी गुर्वावली एवं प्रवचनसारे तच्छिष्यल वश्चकार टिप्पनकम् । श्रीउदयप्रभसूरिविषमपर्दार्थाववोधाख्यम् ॥ ४ ।। शाह, अम्बालाल पी०-कैटलाग ऑफ संस्कृत एण्ड प्राकृत मैन्युस्क्रिप्ट्स इन द कलेक्सन ऑफ मुनि पुण्यविजय, जिल्द १, क्रमांक ३३२४ १. जिनरत्नकोश, पृ० ३५३ २. चंद्रकुलांबरशशिनश्चारित्रश्रीसहस्रपत्रस्य । श्रीशीलभद्रसूरेगुणरत्नमहोदधि (धेः) शिष्यः ।। अभवद् वादिमदहरः षट्तीभोजबोधनदिनेशः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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